निर्मल बाबा कर रहें हैं अब अपने बचाव का कार्य, खा रहें हैं पानी पूरी

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nirmal baba trying to rescue himself these days by eating golgappe cover

जैसा कि आप जानते ही पिछले 3 वर्षों में भारत के बाबाओं पर लगातार बड़ी मुसीबतें आ रही हैं। ऐसे में निर्मल बाबा अपने बचाव के लिए उपाय करने में जुटे हुए हैं। पिछले 3 वर्षों से भारत के बाबाओं में काफी उथल पुथल का माहौल रहा है। पिछले दिनों बाबा आसाराम, संत रामपाल के बाद में अब बाबा राम रहीम भी जेल पहुंच गए हैं।

देखा जाए तो भारत के बाबाओं पर अब कृपा धीरे-धीरे कम होती जा रही है और इसी के चलते अब शायद परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रही है। इन भयंकर परिस्थितियों को देखते हुए अब कृपा करने वाले वाले बाबा यानि निर्मल बाबा भी चुपचाप और डरे सहमें बैठे हुए हैं और अपने ऊपर रुकी हुई कृपा का रास्ता खोले के उपाय करते दिखाई पड़ रहें हैं। आइए अब आपको बतात हैं कि हमारे संवाददाता पीके गिरपड़े की वह बातचीत जो अचानक निर्मल बाबा से उनकी हो गई थी।

nirmal baba trying to rescue himself these days by eating golgappeimage source:

असल में हमारे संवाददाता पीके गिरपड़े जब बाजार से गुजर रहें थे, तब उनकी नजर अचानक पानी पूरी के एक ठेले पर पड़ी। उन्होंने देखा कि ठेले पर निर्मल बाबा पानी पूरी खा रहें हैं। पहले तो गिरपड़े जी को लगा कि शायद उनको धोखा हो गया है, पर जब वह पास गए तो उन्होंने देखा की निर्मल बाबा पानी पूरी वाले से कह रहे थे कि “शाम को ठीक 9 बजे देशी वाली दारू पीना कृपा आनी शुरू हो जाएगी।”

इन शब्दों को सुनकर गिरपड़े जी को पूरा विश्वास हो गया कि पानी पूरी खाने वाला आदमी निर्मल बाबा ही है। गिरपड़े जी तेज कदमों से चलते बाबा के पास पहुंचे और उनसे पूछ लिया – बाबा आप यहां क्या कर रहें हैं।

तुम दूध में कॉम्प्लान मिलाकर पिया करो – बाबा ने गिरपडे जी का जवाब दिए बिना सीधे सीधे कहा।

बाबा मैं दूध ही नहीं पीता हूं ,तब कॉम्प्लान की बात ही कहां रही – गिरपड़े जी बोले

नहीं पीते हो तो रोज पिया करो, कृपा वहीं अटकी हुई है – बाबा अपने आदेश भरे स्वर में बोले।

इसके बाद में बाबा ने गिरपड़े जी के शुरूआती प्रश्न का जवाब देते हुए कहा – “असल में अब हमारे समागमों में भीड़ आना लगातार कम हो रही है, इसलिए अब मैं अपनी कृपा चालू करने के लिए लाल चटनी से पानी पूरी खा रहा हूं। बाबा ने आगे बोलते हुए कहा कि मैंने राम रहीम से भी कहा था कि मंगल और शनिवार को काले कपड़े पहनना लेकिन वह नहीं माना और रंग बिरंगे तथा फूल पत्तियों वाले कपड़े पहनता रहा। अब परिणाम आप खुद ही देख लो।”, इन शब्दों को सुनकर हमारे संवाददाता गिरपड़े जी उस स्थान से तुरंत गायब हो गए। शायद, वे देशी ठेके का पता पूछने के लिए निकल गए थे।

विशेष नोट- इस तरह के आलेख से हमारा उद्देश्य केवल आपका मनोरंजन करना है। इसमें मौजूद नाम, संस्था और राजनीतिक पार्टियों की छवि को धूमिल करना हमारा उद्देश्य नहीं है। साथ ही इसमें बताया गया घटनाक्रम मात्र काल्पनिक है। अगर इससे कोई आहत होता है तो हमें बेहद खेद हैं।

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