पानी में डूब सकती हैं पूरी मुंबई, नासा के बाढ़ की जानकारी देने वाले टूल ने किया खुलासा

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नासा

 

ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरे से आज सारी दुनिया चिंतामग्न हैं। इसके चलते बाढ़ का ख़तरा सबसे ज्यादा बढ़ जाता हैं। आज के समय से विज्ञान लगातार तरक्की कर रहा हैं। अब बाढ़ से बचने के लिए और इसके खतरे का पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने एक नया टूल विकसित कर लिया हैं। बता दें कि हालही में एक ऐसा टूल विकसित हुआ हैं जिससे पता लग सकेगा कि ग्लोबल वार्मिंग के तथात कौन कौन से शहरों के डूबने का ख़तरा सबसे ज्यादा हैं।

इस टूल को नासा ने विकसित किया हैं। इससे यह पता लगाया जा सकेगा कि ग्लेशियरों के पिघलने से दुनिया के किन किन शहरों को सबसे ज्यादा ख़तरा हैं। इस बात को तो सभी जानते ही है कि ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र का जल स्तर बढ़ जाता हैं, पर अब तक असल समस्या यह थी कि इसका सबसे ज्यादा असर समुद्र के किस तटीय शहर पर पड़ेगा, इस बात का पता नहीं होता था।

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मगर अब नासा के बनाये नए टूल के कारण यह समस्या हल हो चुकी हैं। आपको बता दें कि इस नए टूल का नाम “ग्रैडिएंट फिंगरप्रिंट मैपिंग (GFM)” हैं। इस टूल का परिक्षण दुनिया के 293 शहरों पर किया जा चुका हैं। इन शहरों में भारत के मेंगलुरु तथा कर्नाटक भी हैं। अब तक किये गए शोध में यह बात सामने आई हैं कि मेंगलुरु सबसे ज्यादा संवेदनशील शहर हैं। देखा गया हैं कि अंटार्कटिक तथा ग्रीनलैंड की आइस शीट में परिवर्तन आने के कारण सबसे ज्यादा हानि मेंगलुरु को होगी। र्तमान में मेंगलुरु शहर मुंबई तथा न्यूयॉर्क जैसे शहरों से भी ज्यादा खतरनाक स्थिति में हैं।

इस प्रकार कार्य करता हैं यह टूल –

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आपको बता दें कि दुनिया में जितना फ्रैश वाटर हैं उसका 75 प्रतिशत ग्लेशियरों के रूप में जमा हुआ हैं। इनमें अंटार्कटिका तथा ग्रीनलैंड के ग्लेशियर भी हैं। ग्रैडिएंट फिंगरप्रिंट मैपिंग टूल संवेदनशीलता पर कार्य करता हैं और इससे यह पता लगता हैं कि आईसशीट में कितना परिवर्तन आया या समुद्र के जल में कितनी सेंसेटीविटी हुई। यह टूल इस बात को भी बताता हैं कि आईसशीट कितनी मोटी हैं तथा उसमें कितना परिवर्तन आया। इस प्रकार अब इसकी मदद से यह आसानी से पता लग जायेगा कि कौन से शहर को ग्लेशियरों के पिघलने से सबसे ज्यादा खतरा हैं।

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