आपको सबसे पहले बता दें कि जैन धर्म भारत में पैदा हुए प्राचीन धर्मों में से एक है। इस धर्म में मुख्य रूप से 2 शाखाएं हैं। एक दिगंबर तथा एक श्वेतांबर। दिगंबर शब्द का हिंदी मतलब होता है “जिसने आकाश को ही कपड़े के रूप में पहना हुआ हो” यही कारण है कि दिगंबर शाखा के मुनि कभी कपड़े नहीं पहनते हैं बल्कि आकाश को ही अपना कपड़ा मानते हैं। यदि ऐसे किसी मुनि को कपड़े पहना दिए जाएं तो इससे बड़ी शर्मनाक बात आखिर क्या हो सकती है। ऐसी ही घटना जैन मुनि प्रतीक सागर के साथ हाल ही में घटी है। आपको बता दें कि कुछ ही समय पहले जैन मुनि प्रतीक सागर कोलकाता प्रवास में थे और वहां जैन धर्म के ही कुछ लोगों ने उनको आलू पराठा तथा गोल गप्पे खाते पकड़ लिया।
Image source:
वैसे देखा जाए तो गोलगप्पे खाना या पराठा खाना गलत नही है, लेकिन जहां तक जैन मुनि की बात है तो आपको बता दें कि जैन मुनि बनने से पहले ही इस प्रकार के व्यक्ति स्वेच्छा से बहुत से पदार्थों का त्याग कर देते हैं। जैन मुनि बनने से पहले मुमुक्षु बना जाता है। असल में यह वह अवस्था होती है जब व्यक्ति संसार तथा आध्यात्म के बीच में होता है। इस अवस्था में ही सन्यासी व्यक्ति बहुत कुछ निषेध कर डालता है ताकि वह संसार से आध्यात्म की ओर बढ़ सके। यहां ध्यान देने वाली बात यह है जैन मुनि प्रतीक सागर मुमुक्षु नहीं थे बल्कि एक मुनि थे।
मुनि प्रतीक सागर को कोलकाता में तेहरा पंथी कोठी के महामंत्री कमल किशोर पहाड़िया ने आमंत्रित किया था। उस स्थान पर प्रतीक सागर कई बार सन्यास के नियम तोड़ते नजर आये और अब उनको आलू पराठे तथा गोलगप्पे खाते हुए लोगों ने पकड़ लिया। इस बार उनको दंड स्वरुप मुनि संघ व्यवस्था समिति ने कपड़े पहना कर कोलकाता से विदा किया। अब आप बताएं की एक दिगंबर मुनि के लिए कपड़े पहनना कितना शर्मनाक है।
देखा जाए तो भोजन में क्या होना चाहिए और क्या नहीं यह हर व्यक्ति का निजी मामला है। हालांकि यदि जैन मुनि प्रतीक सागर संस्था या उसके अधिकारियों की आज्ञा से दिगंबर पंथ को छोड़ कर ऐसा कुछ करते तो उनको कोई परेशानी नहीं होती।