हाथियों के अस्तित्व पर गहरा संकट मंडरा रहा है। जिसकी बड़ी वजह हाथी दांतो से बनी वस्तुएं हैं। इन वस्तुओं की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मांग के चलते ही इनकी संख्या में भारी कमी आ रही है। साथ ही सिमटते जंगल भी इसका मुख्य कारण हैं। कई बार हाथी भूख के कारण गांव व आबादी वाले क्षेत्रों की ओर रूख करते हैं और उत्पात मचाने पर गांव वालों के द्वारा मार दिए जाते हैं। लेकिन इन सभी वजहों के बीच हाथी दांतों की तस्करी से जुड़े लोगों द्वारा उनकी निर्मम हत्या खासा गंभीर विषय बना हुआ है।
भारत के दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम में हाथियों की तादाद काफी अधिक है। जिसमें दक्षिण में कर्नाटक के कोडगू और मैसूर के बीच करीब 650 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में नागहोल पार्क हथियों के पसंदीदा आवासों में से एक है। इसके दक्षिण-पश्चिम में केरल की व्यानाद सेंचुरी भी मौजूद है। देश के पश्चिमी भू-भाग में काब्रेट-सोनानदी-राजाजी क्षेत्र एशियाई हाथियों के प्रमुख इलाके के रूप में जाना जाता है। एशियाई हाथी को संकटग्रस्त वन्य जीवों की श्रेणी में शामिल किये जाने के मद्देनजर सरकार ने इनके सरंक्षण हेतु आठवीं पंचवर्षीय योजना में अलग से प्रावधान किया था।
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दरसअल एशियाई हाथियों के दाँतों पर नक्काशी भी आसानी से हो जाती है। साथ ही वह नक्काशी करते समय जल्दी फटता भी नहीं है। इसलिए चीन, जापान,थाइलैण्ड और नामीबिया आदि देशों में हाथी दांत की सबसे ज्यादा मांग है। दक्षिण के चंदन और हाथीदांत की तस्करी के कुख्यात तस्कर वीरप्पन के मारे जाने के बाद उम्मीद जताई जा रही थी कि इन मामलो में कमी आएगी। लेकिन हाल ही में बिहार के अररिया से पुलिस द्वारा करीब 18 किलोग्राम हाथीदांत की बरामदी की। इसके अलावा कुछ दिनों पहले केरल वन विभाग व दिल्ली पुलिस की संयुक्त टीम ने जाफराबाद इलाके से करीब 490 किलोग्राम हाथी के दांत व उससे बनी हुई मूर्तियां बरामद की है।
इस मामले को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई बार लाया गया है। जहां सभी एशियाई देशों के द्वारा हाथियों की घटती संख्या को कम करने के लिए कई योजनाएं लाई जाती हैं। लेकिन योजनाएं ठीक ढ़ंग से अमल में नही आ पाती हैं। भारत में आए दिन हाथी दांतों के तस्करों से जुड़ी खबरें इस बात की ओर इशारा कर रही हैं कि जल्द ही इस विषय पर गंभीर कदम नहीं उठाए गए तो हाथियों की संख्या पर और अधिक संकट मंडरा सकता है।