स्टीव जॉब्स एक ऐसा नाम है जो हमारे बीच आज ना होकर भी लोगों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। स्टीव जॉब्स एप्पल के को-फाउंडर थे। इसके साथ-साथ वो दूसरों को प्रेरणा देने वाले व्यक्तियों में से भी एक थे। इस बात को बहुत ही कम लोग जानते हैं कि विदेश में रहते हुए भी उन्होंने जीवन को सही से जीने का ज्ञान भारत से ही जाना था। अगर आप भी अपने जीवन से हताश हो चुके हैं और आपको लगता है कि अब आपके पास जीने का कोई मकसद नहीं रहा तो आज हम आपको स्टीव जॉब्स के जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी कहानियां सुनाने जा रहे हैं, जिन्हें सुन कर आप को जीवन जीने की वजह मिल जाएगी।
स्वयं पर किया विश्वास-
एक समय था जब स्टीव जॉब्स को मजबूरन कॉलेज तक छोड़ना पड़ गया था। उन्हें कॉलेज से क्यों निकाला गया था इसका कारण बताने से पहले हम आपको उनके जन्म की कहानी सुनाना चाहते हैं। जॉब्स का जब जन्म हुआ था उस समय उनकी मां कॉलेज की एक छात्रा थीं तथा वो अविवाहित भी थीं। जिसके कारण उन्होंने सोचा कि वो जॉब्स को किसी ऐसे दंपती को सौंप दें जो कम से कम ग्रेजुएट हो। जॉब्स की मां ने यह फैसला उनके जन्म से पहले ही ले लिया था। जिसके बाद एक दंपती जॉब्स को गोद लेने को तैयार हो गए थे, लेकिन जब जॉब्स का जन्म हुआ तो उन्होंने जॉब्स को गोद लेने से मना कर दिया क्योंकि उन्हें एक लड़की चाहिए थी। जिसके बाद किसी और दंपति ने जॉब्स को गोद लेने का फैसला किया, लेकिन जब जॉब्स की मां को पता चला कि वो दंपती ग्रेजुएट नहीं हैं तो उन्होंने जॉब्स को उन्हें देने से मना कर दिया।
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इसके कुछ समय बाद जॉब्स की मां ने एक दंपती को जॉब्स को सौंप दिया, जिन्होंने जॉब्स को कॉलेज पढ़ने के लिए भेजा, लेकिन जब जॉब्स को पता चला कि उनके माता-पिता के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वो उनके कॉलेज के खर्चे को उठा सकें तो उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया। इस फैसले के साथ ही जॉब्स ने यह भी सोच लिया था कि अब वो किसी तरह का काम करेंगे। जॉब्स मानते थे कि उस समय लिया गया उनका यह फैसला शायद सही नहीं था, पर जब बाद में उन्होंने अपने इस फैसले के बारे में सोचा तो उन्हें अपना यह निर्णय सही लगा।
जॉब्स का जीवन बहुत ही उतार-चढ़ाव वाला था। उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया जब उनके पास रहने के लिए कमरा भी नहीं था। जिसके कारण कई बार वो अपने दोस्त के कमरे में जमीन पर ही सो जाते थे। जॉब्स ने अपना पेट भरने के लिए कोक की बॉटल्स तक बेची थी।
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जैसे-जैसे जॉब्स बड़े हुए तो उन्होंने कैलीग्राफी सीखने की सोची, जिसके लिए उन्होंने सैन शेरीफ टाइपफेस और शेरीफ सीखा। इसके बाद उन्होंने अलग-अलग शब्दों को एक साथ जोड़कर टाइपोग्राफी सीखी। इसके दस साल बाद जॉब्स ने पहले मैकिनटोश कंप्यूटर के डिजाइन का निर्माण किया। जॉब्स मानते थे कि अगर वो उस समय कॉलेज ड्रॉप करने का फैसले नहीं करते तो शायद कभी भी कैलीग्राफी नहीं सीख पाते। वो मानते थे कि अगर आपको स्वयं पर विश्वास होगा तो आप किसी भी परेशानी का सामना कर सकते हैं।
अपनी अन्तरआत्मा की आवाज सुनी-
जॉब्स जब 17 साल के थे तो उन्होंने उस समय एक कोटेशन देखा था। उस कोटेशन में लिखा हुआ था कि आप अपना हर दिन यह सोचकर जियो कि आज आपका आखिरी दिन है क्योंकि एक दिन तो ऐसा आएगा ही जब आपका आखिरी दिन होगा।
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इस बात से जॉब्स बहुत प्रभावित हो गए थे। जिसके बाद 33 सालों तक उन्होंने हर रोज यही सोचा कि आज उनका आखिरी दिन है। इन चन्द शब्दों ने भी जॉब्स को बेहतरीन काम करने के लिए प्रेरित किया, लेकिन जब यह पता चला कि उन्हें कैंसर है तो कुछ पल के लिए वह भी घबरा गए, पर हिम्मत के साथ उन्होंने अपना इलाज कराया जिसके बाद वो ठीक भी हो गए थे।
जॉब्स का मानना था कि उन्होंने मौत को बहुत ही करीब से देखा। इस दुनिया में जो भी व्यक्ति आता है उसे एक ना एक दिन मौत का सामना करना ही पड़ता है। सभी के पास बहुत ही कम समय होता है तथा आपके पास जितना भी समय है उसे दूसरों की बातें सुन कर व्यर्थ मत करो। उसकी जगह हमेशा अपने अन्दर की आवाज सुनो और उसी को मान कर आगे बढ़ो।