कानपुरिया छात्र ने पान मसाला खाकर दी परीक्षा, हुआ सभी विषयों में पास

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जैसा की आप जानते ही हैं कि कुछ समय पूर्व आये बिहार बोर्ड के रिजल्ट ने किस प्रकार से पूरे प्रदेश की नाक कटवा दी। अब इसके बाद में आना था उत्तर प्रदेश रिजल्ट और इसको देखते हुए उत्तर प्रदेश के छात्रों के चेहरे पर भी चिंता की लकीरें दिखाई पड़ने लगी, पर इन सब छात्रों के बीच एक ऐसा छात्र भी था जिसको को किसी प्रकार की कोई चिंता ही नहीं थी और वह रिजल्ट आने के आखरी दिन भी आराम से पान मसाला खाते हुए यूपी स्टाइल में इधर-उधर पिचकारी मारता घूम रहा था।

कई अन्य छात्र और उनके माता पिता इस बंदे को देख कर हैरान थे कि आखिर रिजल्ट के आखरी दिन भी यह कैसे बेखौफ आराम से घूम रहा है। इस छात्र का नाम “पान सिंह चौबे” है। कानपुर का रहने वाले पान सिंह ने इस बार उत्तर बोर्ड से 12वीं की परीक्षा दी थी और रिजल्ट आने के लिए पान सिंह का यू आराम से घूमना लोगों को चकित कर रहा था।

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तो भैय्या, आ गया शाम को रिजल्ट भी और इसी रिजल्ट में एक नंबर था पान सिंह का भी, वो भी फर्स्ट क्लास नम्बरों के साथ। पान सिंह की फर्स्ट क्लास देखने के बाद में कानपुर के सभी लोग चकित रह गए साथ ही पान सिंह के स्कूल के सभी टीचर भी। टीचर लोगों का कहना था कि पान सिंह के इतने नंबर कैसे आ सकते थे, जबकि वह अर्ध वार्षिक परीक्षाओं में भी फेल रहा था।

इसी दौरान पान सिंह के पड़ोस वाले दो छात्रों के अविभावक आपस में लड़ पड़ें और अपने बच्चों के कम अंक आने पर एक दूसरे को दोषी ठहराने लगे। इस दौरान ही हमारे घुम्मकड़ पत्रकार पीके गिरपड़े जी वहां पहुंचे और पान सिंह से फर्स्ट क्लास आने का राज पूछा।

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पान सिंह ने बताया कि “वह एक कानपुरिया लड़का है और अपने यहां प्राचीन काल से पान खाने की परंपरा की रही है, इसलिए वह परीक्षा देने से पहले दही शक्कर नहीं पान मसाला खा कर जाता था। जिसके कारण उसके मस्तिष्क के ज्ञान केंद्र खुल जाते थे। आगे बताते हुए पान सिंह ने बताया कि उसके पिता भी वर्षों से पान के रसिया रहें हैं और इसी के चलते उन्होंने उसका नाम “पान सिंह” रखा था।

पान सिंह ने कहा कि आपने टीवी एड में भी देखा ही होगा कि लोग पानमसाला खाते ही बड़ी हस्ती बन जाते हैं। इन सभी घटनाओं को देखते हुए मैंने परीक्षा से पहले दही शक्कर की जगह पानमसाला खा कर परीक्षा केंद्र जाने का निर्णय लिया था, जिसका परिणाम आप देख ही रहें हैं।” इतना कह कर पान सिंह ने रजनीगंधा का पाउच निकाल कर अपने मुंह में डाला और “मुंह में रजनीगंधा कदमों में दुनिया” का नारा लगाते हुए आगे बढ़ गया।

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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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