मंदिर में निभाई जाने वाली इन परम्पराओं के वैज्ञानिक कारण

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अधिकतर लोग मंदिर इसलिए जाते हैं क्योंकि वहां पर जाने से मन को शांति मिलती है, पर मंदिर में दर्शन करने के पीछे क्या वैज्ञानिक सत्य हैं उनके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। असल में मंदिर दर्शन के पीछे सकारात्मक ऊर्जा को पाना होता है और यह तभी मिल पाती है जब आपकी पांचों इन्द्रियां सक्रिय होती हैं। ऐसे ही मंदिरों से जुड़े कई प्रश्नों के उत्तर हम आपको यहां दे रहे हैं। जानिए इनके बारे में-

1- दीपक के ऊपर हाथ घुमाने का वैज्ञानिक कारण-

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आपने देखा होगा कि पूजन के बाद बहुत से लोग दीपक या कपूर के ऊपर अपना हाथ घुमाते है और अपनी आंखों और सिर से लगाते हैं। ऐसा क्यों करते हैं इसको बहुत कम लोग ही जानते हैं। दरअसल पूजन के बाद में जब आप दीपक के ऊपर या कपूर के ऊपर अपना हाथ घुमाते हैं और अपनी आंखों से लगाते हैं तो हल्के गर्म हाथ से आपकी दृस्टि की इंद्रिय सक्रिय होती है। आपका तनाव घटता है और आपको अच्छा लगता है।

2- चप्पल बाहर क्यों उतारते हैं-

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मंदिर के बाहर जूते या चप्पल निकालने का वैज्ञानिक कारण यह है कि मंदिर का फर्श कुछ इस प्रकार से बनाया जाता है कि यह इलेक्ट्रॉनिक और मैग्नेटिक तरंगों का सबसे बड़ा स्त्रोत्र बन जाता है। इस प्रकार के फर्श पर यदि हम नंगे पांव चलते हैं तो यह ऊर्जा हमारे शरीर में हमारे पैरों जरिए अधिक से अधिक पहुंचती है।

3- मंदिर में घंटा लगाने का वैज्ञानिक कारण-

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मंदिर में आपने घंटा जरूर देखा होगा, पर आप उसका वैज्ञानिक कारण शायद ही जानते होंगे। असल में मंदिर का घंटा बजने पर उसकी गूंज 7 सेकेण्ड तक बनी रहती है। जो शरीर के 7 हीलिंग सेंटर्स को सक्रिय कर देती है।

4- परिक्रमा के पीछे वैज्ञानिक कारण –

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बहुत से मंदिरों में लोग परिक्रमा करते देखे जाते हैं। यह परिक्रमा 8 से 9 बार की जाती है, पर क्या आपको पता है कि परिक्रमा आखिर क्यों की जाती है। असल में पैरों के सहारे मंदिर की सकारात्मक ऊर्जा उस समय हमारे शरीर में प्रवेश करने लगती है जब हम परिक्रमा करते हैं। इसलिए परिक्रमा लोग नंगे पैर ही करते हैं।

5- भगवान की मूर्ति-

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मंदिर की मूर्ति को असल में मंदिर के गर्भगृह के बिल्कुल बीच में ही स्थापित किया जाता है क्योंकि इस जगह पर सबसे ज्यादा ऊर्जा होती है। इस स्थान पर खड़े होने पर आपकी नकारात्मकता जाने लगती है और सकारात्मकता बढ़ती है।

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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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