महात्मा गांधी को संयोगवशात मिले थे ये संत, जो बाद में भूमिहीनों के लिए मसीहा साबित हुए

-

महात्मा गांधी का राजनीतिक उत्तराधिकारी कौन था अगर यह सवाल किसी से पूंछा जाए तो उत्तर मिलेगा जवाहर लाल नेहरू, लेकिन एक और भी व्यक्ति थे जिनका जीवन ही गांधी दर्शन पर आधारित था। और वे थे संत विनोबा भावे जिनका जन्म 11 सितंबर, 1895 को हुआ और वे 15 नवंबर, 1982 को दुनिया को अलविदा कह गये।

दान में मिले विनोबा बने भूदान के प्रणेता

गांधी जी से एक बार महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मण नरहरि भावे की मुलाकात हुई एक ही मुलाकात से गांधी जी से प्रभावित हो कर नरहरि भावे ने अपने चारों बेटों को गांधी जी को दान में दे दिया।. वे बेटे थे विनायक, बालकृष्ण, दत्तात्रेय और शिवाजी. विनायक ही आगे बड़े हो कर विनोबा भावे के नाम से मशहूर हुए। बचपन से विनोबा गांधी जी के नज़दीक रहे नतीजा यह हुआ कि 21 वर्ष की उम्र में विनोबा गांधी जी के कोचराब आश्रम के हो कर रह गए यहीं वे गीता पढ़ते और उसको अपने जीवन में उतारने की कोशिश करते रहे। गांधी जी भी युवा विनोबा की लगन से प्रभावित हो कर उन्हें वर्धा आश्रम की ज़िम्मेदारी दे दी।

गांधी-के-सामने-विनोबा-की-अलग-पहचान

गांधी के सामने विनोबा की अलग पहचान

गांधी के रास्ते पर चलने के लिए वैसे तो कई महापुरुष आगे आए लेकिन हर किसी का रास्ता अगल था कोई समाजवाद के रास्ते तो कोई किसी और वाद का सहारा लेकर लेकिन विनोबा भावे केवल और केवल गांधी की विचारधारा पर ही खुद को न्यौछावर कर दिया।

भूदान से समाज में बराबरी की कोशिश

आज़ादी के बाद समाज में अमीर-गरीब की खाई काफी गहरी थी और गरीब भूमिहीन थे ऐसे में अगर गरीबों को थोड़ी भी भूमि मिल जाए तो वे आसानी से अपने परिवार का भरण पोषण कर सकते थे यह देखने को मिला विनोबा को अप्रैल 1951 में जब वे तेलंगाना के दौरे पर गए। 18 अप्रैल, 1951 को वे नलगोंडा ज़िले के पोचमपल्ली पहुंच कर वहां के स्थानीय लोगों से बात की जो हरिजन थे, सभी ने एक स्वर से ज़मीन की मांग की। सभी ने कहा कि यहां उनके 40 परिवार हैं और अगर उनको 80 एकड़ ज़मीन मिल जाए, तो वे आसानी से परिवार चला सकते हैं।

भूदान-आंदोलन-की-लोकप्रियता

विनोबा गरीबों की समस्या से व्यथित हो कर गांव के लोगों से ही हरिजनों के लिए ज़मीन मांगी। उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर ज़मीनदार रामचंद्र रेड्डी ने तुरंत 100 एकड़ ज़मीन देने की पेशकश कर दी। इसी भूमिदान से विनोबा को भूदान आंदोलन का विचार आया। विनोबा देशभर में पदयात्रा पर निकल पड़े और बड़े किसानों से ज़मीन मांगनें लगे।

संत विनोबा की मांग पर देशभर में लोगों ने बढ़-चढ़ कर ज़मीन दान दी। विनोबा जब अपनी यात्रा पूरी कर वापस पवनार पहुंचे तो हज़ारों एकड़ ज़मीन लैंड बैंक में जमा हो गई थी। इस भूदान से विनोबा का उत्साह और बढ़ा और वे उत्तर भारत की यात्रा पर निकले। दूसरी ओर कांग्रेस ने विनोबा के भूदान आंदोलन को हाथों-हाथ लपक लिया। उत्तर प्रदेश और बिहार में भी ज़बरदस्त भूदान हुआ। सरकार ने भूदान एक्ट पास करा दिया ताकी ज़मीन का ढ़ंग से बंटवारा हो सके।

जानकार मानते हैं कि बड़े किसान कांग्रेस की सीलिग से नाराज हो रहे थे लोगों की नाराज़गी से बचने का कांग्रेस के पास भूदान आंदोलत बड़ा अच्छा उपाय था। इसी लिए कांग्रेस ने इसका दिल खोल कर स्वागत किया। लेकिन सरकार के बीच में पड़ते ही लोचा होने लगा, 22.90 लाख एकड़ जो ज़मीन दान में मिली उसमें से 6.27 लाख एकड़ ज़मीन आज तक ज़रूरतमंदों को बांटी नहीं गई है। केवल महाराष्ट्र जो कि  विनोबा की कर्मभूमि रही है वहां भी 2017 तक 77 हज़ार एकड़ दान में मिली ज़मीन अभी भी बाकी थी।

भूदान आंदोलन की लोकप्रियता पूरे देश में होने लगी आचार्य विनोबा भावे के ऊपर डांक टिकट जारी किया गया लेकिन उनके आंदोलन और सरकार के उपक्रम में काफी अंतर आया। जब तक विनोबा भावे का आंदोलन था तब तक यह सफल रहा ऐसा माना जा सकता है।

विनोबा की आड़ में इमरजेंसी को जायज ठहराने की कोशिश

विनोबा भावे पर आरोप लगा कि वे इमरजेंसी की आलोचना करने से बचते रहे। दूसरा उन्होंने इमरजेंसी को ‘अनुशासन पर्व’ नाम दिया। जबकि इस पर लोगों के अलग-अलग मत हैं। इसके पीछे भी एक नाटकीय घटना थी। दरअसल विनोबा ने 25 दिसंबर, 1974 को एक साल का मौन धारण किया उसी समय विनोबा की लोकप्रीयता का लाभ लेने के लिए वसंत साठे (जो बाद में देश के सूचना और प्रसारण मंत्री रहे) विनोबा से मिलने उनके पवनार वाले ब्रह्म विद्या मंदिर गए। हालांकि साठे और विनोबा की मुलाकात में विनोबा मौन रहे, कहते हैं बस अपने पास रखी एक किताब को विनोबा ने साठे की ओर बढ़ा दी। किताब थी ‘अनुशासन पर्व’, अनुशासन पर्व महाभारत का एक अध्याय भी है।

आपातकाल ‘अनुशासन पर्व’ है.

आपतकाल के पक्षधर और विरोधी दोनों ने इस बयान को इमरजेंसी को विनोबा के दिए सर्टिफिकेट की तरह देखा. पक्षधरों ने जश्न मनया तो विरोधियों ने इसके लिए विनोबा की आलोचना शुरू कर दी।

वसंत साठे, और विनोबा भावे की मुलाकात के बाद ही इमरजेंसी को लेकर विनोबा के ‘नर्म रुख’ की आलोचना होने लगी।

बुद्धिजीवी केवल आपातकाल के लिए ही विनोबा की आलोचना की और केवल उनके जीवन के इसी अध्याय को विवादित माना है। वेसे 15 नवंबर, 1985 को उनके अवसान के साथ ही ये कहा जा सकता है कि उनकी पूरी ज़िंदगी आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श ही स्थापित करने वाली रही है।

Share this article

Recent posts

भारत सरकार ने तीसरी बार दिया चीन को बड़ा झटका, Snack Video समेत 43 ऐप्स पर लगा दिया बैन

भारत और चीन के बीच चल रहे विवाद को देखते हुए एक बार फिर से भारत सरकार ने चीन को एक बड़ा झटका दिया...

इंटरनेशनल एमी अवॉर्डस 2020: निर्भया केस पर बनी सीरीज ने जीता बेस्ट ड्रामा अवॉर्ड

कोरोनावायरस की वजह से जहां हर किसी के लिए यह साल काफी मनहूस रहा है तो वहीं दूसरी ओर इस महामारी के बीच कुछ...

कामाख्या मंदिर में मुकेश अंबानी ने दान किए सोने के कलश, वजन जान भौचक्के हो जाएंगे

भारत के सबसे रईस उद्यमी मुकेश अम्बानी किसी ना किसी काम के चलते सुर्खियो में बने रहते है। आज के समय में अम्बानी परिवार...

कुंवारी लड़कियों के खून से नहाती थी ये महिला, वजह कर देगी आपको हैरान

अक्सर हम अखबारों में हत्या मारपीट की घटनाओं के बारें में रोज पढ़ते है। लेकिन कुछ लोग अपने शौक को पूरा करने के लिए...

आसमान से गिरी ऐसी अद्भुत चीज़, जिसे पाकर रातों रात करोड़पति बन गया यह आदमी

जब आसमान से कुछ आती है तो लोग आफत ही जानते हैं। लेकिन अगर यह कहें कि आसमान से आफत नहीं धन वर्षा हुई...

Popular categories

Recent comments