तंत्र शास्त्र की अनेक शाखाएं तथा उपशाखाएं हैं और इन सभी की साधना पद्धति तथा कायदे कानून भी भिन्न-भिन्न होते हैं। इनमें से ही एक शाखा का नाम है “अघोर पंथ”। इसमें अनेकों साधनायें हैं और उनमें से एक साधना है “शव साधना”, आज हम आपको इस साधना के बारे में ही जानकारी दे रहें हैं। शव साधना के बारे में आम लोगों को कम ज्ञान है और इसलिए इसके प्रति कई प्रकार की मायताएं भी जन मानस में बनी हुई हैं। आज हम आपको इस साधना के एक बारे में सही जानकारी देकर आपको इस साधना संबंधी अंध-मान्यताओं को समाप्त करेंगे, तो आइए जानते हैं शव साधना के बारे में।
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होता है लाश का इस्तेमाल –
सबसे पहले हम आपको बता दें कि अघोर पंथ की यह साधना अपने में बड़े स्तर की तथा प्रबल साधना मानी जाती है। इस साधना के लिए सबसे पहले एक शव का इंतजाम करना होता है क्योंकि इस साधना में शव को आसन की तरह प्रयोग किया जाता है। शव साधना में प्रयोग में लाये जाने वाले शव का सबसे पहले अवलोकन किया जाता है कि वह शव कहीं से कटा-फटा या उसकी अस्थि भंग तो नहीं हो। कुल मिला कर शव साधना में एक स्वस्थ शरीर का उपयोग किया जाता है। इस साधना को अन्य तांत्रिक साधनाओं की तरह खुले में नहीं किया जाता बल्कि आम लोगों से दूर किसी निर्जन स्थान पर किया जाता है।
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यह है प्रक्रिया –
शव साधना के लिए शव को अच्छे से नहला कर शुद्ध कर लिया जाता है और इसके बाद विशेष तांत्रिक प्रक्रिया के तहत शव के सिर में छोटा सा सुराग बना यज्ञ सामग्री आदि भी डाली जाती है। इसके बाद शव को साधना स्थल पर रख दिया जाता है और साधक गुरू पूजन, अघोर पुरुष नमन, दिशा नमन, दिशा कीलन, स्थान कीलन जैसी कई क्रिया करता है। शव का भी पूजन कर उसका पूरा सम्मान किया जाता है। शव पूजन के पश्चात् सही ग्रह नक्षत्र की स्थिति आने पर शव के ऊपर बैठ शव साधना के मंत्रों का जप शुरू किया जाता है।
साधक के सामने अलख यानि यज्ञ स्थल प्रज्जवलित रहता है, जिसमें अघोरी हर मंत्र के अंत में तांत्रिक सामग्री की आहुति देता रहता है। जैसे-जैसे अघोर साधक के जप पूर्णता की ओर अग्रसर होते जाते हैं, वैसे-वैसे साधक का जप स्वर भी प्रबल होता जाता है। इस स्थिति में शव में धीरे-धीरे चेतना आती जाती है। उसके अंग फड़कना शुरू कर देते। उसकी आंखों की पलकें खुलने तथा बंद होने लगती हैं और शव की सांसे भी धीरे-धीरे तेज होने लगती हैं। इस पूरी प्रक्रिया में शव पूरी तरह से जाग्रत हो जाता है। इस अवस्था में तांत्रिक लोग शव सहायता से अनेक प्रकार की गुप्त तांत्रिक साधनाओं के तरीके और रहस्य जानते हैं।
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शव साधना के लाभ –
अघोर साधकों की मानें तो शव साधना के कई के तरीके हैं, पर शव साधना का विशेष लाभ यही होता है कि इस साधना के माध्यम से अघोरी लोग अन्य तांत्रिक गुप्त साधनाओं का ज्ञान शव द्वारा प्राप्त करते हैं। असल में होता यह है कि जब शव पूरी तरह से जाग्रत हो जाता है तब वह साधना करने वाले अघोरी से उसी प्रकार बातचीत करता है जैसे दो सामान्य व्यक्ति करते हैं।
इस अवस्था में शव इस जगत तथा उस दूसरे जगत के मध्य एक माध्यम बना होता है, इसलिए साधक उससे जिन साधनाओं के बारे में जानना चाहता है, वह अघोर साधक को उन सभी साधनाओं के बारे में ज्ञान देता है और इस ज्ञान की मदद से साधक तंत्र के मार्ग पर आगे की ओर बढ़ता है। इस साधना के बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि इस पर पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू जी ने बैन लगा दिया था, हालांकि इस बात के कोई सबूत नहीं है, पर इस साधना को आज भी कोई खुले में नहीं करता। वास्तविकता यह है कि शव साधना के बहुत ही कम जानकार लोग रह गए हैं और जब कभी भी इनकी अध्यक्षता में यह साधना होती है तो वह बेहद निर्जन स्थान में गुप्त तरीके से होती है।
