मिट्टी से बना यह किला पड़ा तोपों और बारूदों पर भारी, आज भी है अभेद्य और अजेय

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दिल्ली की जमीन ने कई इतिहास के पन्नों की दस्तां लिखी और देखी है। इसनें कितने शासकों के शासन की जहां शुरूआत को देखा है तो वहीं इनके अंत की खूनी लड़ाईयों को भी नजदीक से महसूस किया है। यहां पर मौजूद ऐतिहासिक किले इस बात के गवाह बने हुए है। आज हम आपको ऐसे ही ऐतिहासिक किले के बारे में बता रहें हैं, जो अपने ही आप में अजर और अमर है। इस किले की खास बनावट के कारण कोई भी दूसरा शासक इसे जीतने की कल्पना भी नहीं कर पाया। इसी कारण इसका नाम अजेय दुर्ग पड़ा। लोहागढ़ का किला राजस्थान के भरतपुर में स्थित है। अंग्रेजों ने भी इस किले पर जीत हासिल करने के लिए कई बार तोपों से आक्रमण किया, लेकिन फिर भी इस किले को कोई औजार तक भेद नहीं पाया है।

lohagarh fort ,Gopalgarh, Bharatpur, Rajasthan1Image Source:

जाटों की दृढ़ता की मिसाल देता यह किला 18वीं शताब्दी के आरंभ में जाट शासक महाराजा सूरजमल के द्वारा बनवाया गया था। महाराजा सूरजमल ने भरतपुर में ही रहकर रियासत फलाई थी। महाराजा सूरजमल ने एक ऐसे किले की कल्पना की थी जो काफी कम लागत पर ऐसी मजबूती के साथ तैयार हो जाए, जिसमें बाहरी आक्रमणकारियों के द्वारा उपयोग किये जानें वाले तोपों तथा बारूदो का भी कोई असर न हो। जिसकी दीवारों को बारूद के गोले भी भेद ना पाएं।
इस किले के चारों ओर बनी मजबूत दीवार के कारण इस किले को राजस्थान का सिंहद्वार भी कहा जाता है। अंग्रेजों ने इस किले पर कई बार हमला करने की कोशिश की और इसे धवस्त करने के लिए उन्होनें उन्होंने इस पर कई बार तोपों के गोलों और बारूदों का भी इस्तेमाल किया, पर यह सभी वहां की मिट्टी पर समाते गए और अग्रेजों के कोई भी अस्त्र-शस्त्र इस किले को भेद नहीं पाए। जिससे थक-हारकर अंग्रेज वहां से भाग गए।

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