“चंद्रकांता” नामक धारावाहिक का नाम आपने सुना ही होगा, यह धारावाहिक 90 के दशक का एक प्रसिद्ध धारावाहिक था जो की “देवकीनंदन खत्री” नामक हिंदी लेखक के उपन्यास “चंद्रकांता” पर आधारित था। हालांकी चंद्रकांता नामक यह उपन्यास तो काल्पनिक था, पर इस उपन्यास में जिस “तिलिस्म” और “चुनारगढ़” की बात कही गई है उसका सदियों पुराना रिश्ता भारत से रहा है। आज हम आपको इसी तिलिस्म और चुनारगढ़ के किले के साथ-साथ इस किले में रहने वाले अमर मानव के बारे में अपने इस आलेख में बता रहें हैं, आइये जाते हैं इन तीनों चीजों के बारे में।
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तिलिस्म शब्द से आप अनजान नहीं होंगे पर फिर भी हम आपको बता दें कि तिलिस्म शब्द तंत्र के क्षेत्र के अन्तर्गत आता है, जिसका समान्य अर्थ होता है “जाल”, पुरातन समय में बहुत से राजा अपने खजाने को धरती में गाढ़ कर, अपने समय के ही विशेष तांत्रिकों से उस खजाने को तिलिस्म में बंधवा देते थे ताकि कोई उसको न निकाल सके, समय परिवर्तन के कारण यह तिलिस्म शब्द ही गाड़े गए धन पर सर्प की आकृति, इंद्रजाल के रूप में फेमस हो गया। चुनारगढ़ के जिस किले के बारे में हम आपको बताने जा रहें हैं, उसके प्रति भी लोगों की मान्यता यह है कि इस किले के अंदर भी कोई तिलिस्म है जिसके नीचे खजाना दबा हुआ है।
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अब आपको बताते हैं चुनारगढ़ के किले के बारे में, यह तिलिस्मी किला उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर से करीब 35 किमी दूर स्थित है। कहा जाता है यह किला महाभारत से भी कहीं ज्यादा प्राचीन है, इस किले के बारे में यह भी बताया जाता है कि यह किला करीब 5000 साल पुराना है। इस किले का निर्माण किसने कराया था इसका इतिहास में कोई साक्ष्य नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान पर “सम्राट काल्यवन” का कारागार यानी जेलखाना था। योगीराज भतृहरी एक ऐसे मानव है जिनके बारे में यह कहा जाता है कि वे अमर प्राणी है और आज हजारों साल बाद भी देखें जाते हैं। भतृहरी संयास लेने से पहले एक राजा थे, पर बाद में उन्होंने संन्यास ले लिया और महान तप के बाद में उन्होंने अमर प्राणी होने का वरदान पाया था। बहुत से लोगों का मानना कि भतृहरी आज भी इसी चुनारगढ़ के किले में निवास करते हैं यानि यह किला भतृहरी का निवास स्थान है।