जाने सबसे पुराणिक दुर्लभ और बेशकीमती घड़ी की कहानी

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आगरा कॉलेज के प्राचार्य के अनुसार उनके कॉलेज के नीव गंगाधर शास्त्री ने 1823 में रखी थी। शास्त्री ज्योतियषाचार्य और संस्कृत के विद्वान थे, वह मराठा राजघराने के राज पुरोहित भी थे। शुरुआती दौर में यहां केवल ज्योतिष और संस्कृत की क्लासिस ही चलती थी, लेकिन इसके बाद उन्होंने शिक्षण संस्था की जागीर ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दी।

इसके बाद तत्कालीनप प्रधानचार्य ई लोच के सामने कंपनी ने एक पत्थर घड़ी का निर्माण 1842 में करवाया था। इस धूप घड़ी में हिंदी और रोमन के अंक अंकित हैं। सूर्य के प्रकाश की मदद से यह घड़ी चलती है। इस घड़ी का नाम धूप घड़ी रख दिया गया।

हां पर कक्षा शुरू होने से लेकर छुट्टी तक इस घड़ी को देखकर किया जाता था। धूप की घड़ी की खासियत यह है कि इसमें समय कोई भी देख सकता है। धूप की परछाई के हिसाब से सही समय का अनुमान लगाया जा सकता है। घड़ी के बीच में लोहे की तिरछी प्लेट लगी हुई है। जिसमें कोण के माध्यम से नंबर अंकित किए गए हैं। सूर्य के उगले के साथ ही लोहे की प्लेट पर धूप की परछाई से सही समय को जाना जा सकता है।

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