हमारे देश के एक हिस्से में सावन माह में लोग पेड़ पौधों का पूजन किसी देवता की तरह करते हैं। ये लोग इन पेड़ पौधों का पूजन कर इनको दूध भी चढ़ाते हैं। यदि कोई गलती से एक पेड़ को भी तोड़ देता है तो उसको बदले में 20 पेड़ लगाने होते हैं। यह सब होता है झारखंड के लातेहार और चतरा जिले की सीमा पर बसे गावों में। इन गावों में सावन माह में पेड़ पौधों का पूजन किया जाता है तथा छोटे पेड़ों की देखभाल किसी बच्चे की तरह से की जाती है। ऐसे छोटे पौधों पर महिलाएं 10 दिन तक दूध चढाती हैं तथा पौधे के 15 दिनों का हो जाने के बाद उसकी लंबी आयु की कामना करती हैं और रक्षा सूत्र बांधती हैं।
सावन माह में इन गावों के आसपास न तो पेड़ों को काटा जाता है और न ही किसी प्रकार की हानि पहुंचाई जाती है। यदि गलती से भी कोई पेड़ टूट जाता है तो उसको बदले में 20 पेड़ लगाने होते हैं। यदि किसी का कोई पशु लगाए गए पेड़ो को चर लेता है तो पशु के मालिक को बदले में 2 पेड़ लगाने होने होते हैं। कुल मिलाकर सावन माह में पेड़ों को यदि कोई हानि पहुंचाता है तो उसको पेड़ लगाने का दंड दिया जाता है।
सदियों से जारी है यह परंपरा –
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यहां के कुरामू गांव में सावन माह में शिव उपासना तथा पेड़ों का पूजन साथ चलते हैं। सावन के आखरी दिन गांव के सभी लोग खुले आकाश के नीचे जुटते हैं और ईश्वर से गांव की समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। गांव के लोगों के अनुसार वृक्षों के पूजन की यह परंपरा सदियों से चल रही है। गांव के लोग बताते हैं की “हमारे पूर्वजों का संदेश है की वृक्ष हमें फल, छाया और शुद्ध हवा देते हैं इसलिए उनका संरक्षण करना चाहिए। वृक्ष ही जीवित देवता सामान हैं। भगवान शिव भी सावन माह को पसंद करते हैं इसलिए हमारे पूर्वजों ने सावन माह को ही वृक्ष पूजन के लिए चुना था।” यही कारण है की इस क्षेत्र के सभी गांव चारों और से हरियाली से घिरे हुए हैं। इन गावों में आतिथ्य परंपरा भी बहुत उच्च कोटी की है। जब कोई मेहमान आता है तो सभी लोग उसका बहुत अच्छे से स्वागत करते हैं और जब वह विदा होता है तो उसको दही खिलाकर विदा किया जाता है। आज जब सारी दुनियां बढ़ते प्रदुषण से परेशान और पर्यावरण संरक्षण की बात कर रही है तब ये गांव हमें पर्यावरण को सही रखने का एक जीवंत संदेश दे रहें हैं।