मित्र बनाने से पहले श्रीमद्भागवत गीता में बताई गई इन 3 बातों का जरुर रखें ध्यान

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हमारे जीवन में मित्रों का बहुत योगदान रहता है। जीवन सही राह से ही गुजरे इसके लिए श्रीमद्भागवत गीता में कुछ जरुरी बातें बताई गई हैं। कई बार सही मित्र न मिल पाने से जीवन को गलत राह मिल जाती है जो व्यक्ति एक अच्छा सामाजिक प्राणी बन सकता था वह अपराध के रास्ते पर चल पड़ता है। देखा जाए तो सनातन धर्म के ग्रंथों में बड़ी संख्या में लाइफ मैनेजमेंट फार्मूले मिलते हैं। जरुरी बात यह है कि उनको समझा जाए और खुद के जीवन में उनका अमल किया जाए। आज इन्ही फार्मूलों में से मित्रता से सम्बंधित कुछ हम आपको यहां बता रहें हैं जो श्रीमद्भागवत गीता में बताए गए है। इन बातों को जानकर आप इस बात का सहज पता लगा सकते हैं कि आखिर एक सच्चा मित्र कैसा होता है। आइये अब विस्तार से बताते हैं आपको इन बातों के बारे में।

महाभारत में है उल्लेख

महाभारत ग्रंथ के वन पर्व में इस बात का उल्लेख किया गया है कि आखिर मित्र किस प्रकार का होना चाहिए। इस श्लोक में 3 बातें बताई गई है जिनका आपको ध्यान रखना है।

श्लोक – येषां त्रीणयवदातानि विद्या योनिश्च कर्म च!

ते सेव्यास्तै: समास्या हि शास्त्रेभ्योपि गरीयसि!!

1 – ज्ञान तथा शिक्षा –

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यदि आप किसी से भी मित्रता करना चाहते हैं तो उसके ज्ञान तथा शिक्षा के स्तर को जरूर जांच लें। असल में कई लोगों को ज्ञान तथा विद्या की बातों से ऐतराज होता है। सार यह है कि आप हमेशा अच्छे स्तर के ज्ञान तथा विद्या वाले व्यक्ति को ही अपना मित्र बनाएं क्योंकि ऐसा मित्र ही आपको परेशानी के समय मुसीबत से बाहर निकाल सकता है।

2 – परिवार तथा उसके दोस्तों की जानकारी लें

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जिस भी व्यक्ति से आप मित्रता करने जा रहें हैं उसके परिवार की भी जानकारी जरूर कर लें। आपका दोस्त कितना भी अच्छा हो लेकिन उसका परिवार यदि दुराचारी हुआ तो उसका परिणाम आपको भी भोगना पड़ेगा। गेंहू के साथ घुन पीसने वाली कहावत से यहीं चरित्रार्थ होता है।

3 – जानिये कार्य और आदतों के बारे में

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आप जिस किसी से भी मित्रता कर रहें हैं। उसके कार्य तथा आदतों के बारे में जरूर जान लें। यदि उस व्यक्ति की आदतें खराब हैं तो आपको भी उसकी वजह से अपमानित होना पड़ेगा इसलिए ऐसे व्यक्ति से समय रहते ही दूरी बना लें तो अच्छा है।

इस प्रकार श्रीमद्भागवत गीता में लिखी ये तीन बातें आप अपने जीवन में शामिल कर लें ताकि सही समय पर सही मित्र की पहचान हो सके।

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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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