मान्यता: यहां दिन में विदाई होने पर पत्थर बन जाते हैं बाराती

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देखा जाये तो अपने देश में ऐसी बहुत सी घटनाएं हुई हैं जिनका कोई उत्तर अभी तक नहीं मिल पाया है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस प्रकार की जितनी भी घटनाएं देखने-सुनने में आती हैं, उत्तर न मिल पाने के कारण इन घटनाओं को मात्र कहानी मान कर भुला दिया जाता है। आज हम आपको एक ऐसी ही घटना से रूबरू करा रहे हैं जो अपने ही देश के एक गांव से जुड़ी है। सबसे पहले आपको यह बता दें कि इस गांव के लोगों को जितनी चिंता अपनी बेटी की विदाई की होती है, उतनी कभी किसी बात की नहीं होती।

आइए आपको ले चलते हैं अपने देश के छत्तीसगढ़ राज्य में। यहां कोरवा-चांपा मार्ग पर स्थित है ग्राम डोंगरीभाठा। इस गांव में पिछले 100 साल से एक अनोखी परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है।

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क्या है यह परंपरा –
यह एक ऐसी परंपरा है जिसको सुनकर आप हैरान हो जाएंगे। असल में इस गांव के बाहर दूल्हा-दुल्हन के रूप में कुछ पत्थर कतार से लगे हुए हैं। उनको यहां पूजा जाता है, पर क्यों? इसके पीछे है एक पुरानी घटना। जो आज भी इस गांव के लोगों पर अपना पूरा प्रभाव बनाये हुए है। गांव वालों का मानना है कि वर्षों पहले यहां दूल्हा-दुल्हन समेत पूरे बाराती पत्थर में बदल गए थे। इन लोगों का मानना कि यह बारात दिन के समय दुल्हन की विदाई करवा कर यहां से गुज़र रही थी। इससे यहां पर एक मान्यता का जन्म हो गया कि जो कोई भी बाराती यहां से दिन के समय निकलेंगे वो पत्थर की मूर्तियों में तब्दील हो जाएंगे। इसलिए आज भी यहां के लोग अपनी लड़कियों की शादी कर दिन निकलने से पहले ही उन्हें विदा कर देते हैं।

गांव के लोग इस घटना के बारे में बताते हैं कि तब डोंगरीभाठा महज एक छोटे से कबीले जैसा था। तब एक अनोखी घटना घटी। एक बारात जो दूल्हन को लेकर कहीं से आ रही थी रात होने पर यहां विश्राम के लिए रुक गई थी, पर सुबह होते ही दूल्हा-दुल्हन सहित सारे बाराती पत्थर की मूर्तियों में बदल गये।

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इस गांव में आज भी जब कोई शादी होती है तो लड़के वाले सबसे पहले दूल्हा-दुल्हन की पत्थर की बनी मूर्तियों का पूजन करते हैं। बाद में गांव के मंदिर में पूजा कर के अपने सफल वैवाहिक जीवन की कामना करते हैं।

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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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