पातालेश्वर शिव मंदिर – यहां पर मुस्लिम लोग भी ग्रहण करते हैं प्रसाद और करते हैं मेले में सहयोग

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Muslim people have offerings here at this pataleshwar shiva mandir cover

अपने देश में वैसे तो बहुत से शिवालय हैं, पर उनमें से कुछ अपनी खास विशेषता के कारण काफी प्रसिद्धि हासिल किए हुए हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही शिवालय के बारे में बता रहें हैं जहां का प्रसाद हिंदू-मुस्लिम साथ-साथ ग्रहण करते हैं। जी हां, आज हम आपको जिस शिवालय के बारे में बता रहें हैं वहां का प्रसाद हिंदू लोगों के साथ-साथ मुस्लिम लोग भी ग्रहण करते हैं तथा मंदिर के पास लगने वाले मेले में भी अपना सहयोग देते हैं।

यह मंदिर वर्तमान में भाईचारे का जीवंत उद्धरण बना हुआ है। आपको हम बता दें कि इस मंदिर का नाम “पातालेश्वर शिव मंदिर” है और यह उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले के भमरौआ गांव में बना हुआ है। पातालेश्वर शिव मंदिर में हिंदू लोगों की ही तरह मुस्लिम लोग भी आते हैं तथा प्रसाद ग्रहण करते हैं। बहुत से मुस्लिम लोग यहां प्रसाद चढ़ाते भी देखें जाते हैं। आपको हम बता दें कि इस पातालेश्वर शिव मंदिर का निर्माण आज से करीब 200 वर्ष पहले तत्कालीन रामपुर के नवाब ने कराया था।

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इस मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित नरेश कुमार शर्मा इस बारे में बताते हुए कहते हैं कि हिंदू लोगों की तरह ही इस मंदिर में मुस्लिम समुदाय के लोग भी आते हैं। कुछ मुस्लिम लोग यहां प्रसाद भी लाते हैं और हमसे उसको चढ़वाते हैं। मुस्लिम समुदाय के लोग मंदिर के भंडारे में अपना सहयोग भी देते हैं तथा प्रसाद भी ग्रहण करते हैं।

यहां के मुहम्मद अली नामक एक मुस्लिम व्यक्ति कहते हैं कि गांव में भंडारे अक्सर चलते रहते हैं और मुस्लिम समुदाय के लोग इन भंडारों में अपना सहयोग देते हैं तथा भंडारे का प्रसाद भी ग्रहण करते हैं। एक अन्य मुस्लिम व्यक्ति भूरा का कहना है कि पातालेश्वर शिव मंदिर की काफी मान्यता है और हमारा काम फेरी का है, इसलिए जब कभी किसी अन्य गांव में जाना होता है और वहां के लोगों को पता लगता है कि हम भमरौआ गांव के हैं, तो वे हमें ही प्रसाद चढ़ाने को दे देते हैं।

ऐसे में हम मंदिर के पुजारी से उनका प्रसाद चढ़वा देते हैं। पंडित नरेश शर्मा पातालेश्वर शिव मंदिर के इतिहास के बारे में बताते हुए कहते हैं कि “पहले मंदिर के स्थान वाली भूमि बंजर थी। इस भूमि में ही पातालेश्वर महादेव शिवलिंग निकला था, तब उस समय के रामपुर के नवाब अहमद अली खां ने पंडितों से जानकारी ली और इस स्थान सन् 1788 में मंदिर का निर्माण कार्य शुरू करा दिया था और सन् 1822 में जब मंदिर निर्माण पूरा हो गया, तब पंडित दयाल दास को इस मंदिर की जिम्मेदारी दी गई थी।” इस मंदिर निर्माण में मुस्लिम लोगों ने अपना बहुत सहयोग किया था, आज भी वे यहां आते हैं और इसलिए ही इस क्षेत्र में यह मंदिर हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे का प्रतीक बना हुआ है।

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