माना जाता है कि भगवान हनुमान अजर अमर हैं। वे इस पृथ्वी पर भ्रमण करते रहते हैं तथा वे चिरंजीवी हैं। आज भी अपने देश के कई ऐसे स्थान हैं। जहां उनके आने या उनके कुछ चिन्हों के बारे में बहुत सी बातें कही जाती हैं। भगवान हनुमान ने ही रावण की लंका में आग लगाई थी तथा युद्ध के दौरान रावण वध में भी उन्होंने प्रभू श्रीराम का पूरा सहयोग किया था। इसी कारण मान्यता यह है कि श्रीलंका के साथ भगवान हनुमान का पुरातन संबंध है। ऐसा कहा जाता है वे प्रत्येक 41 वर्ष बाद श्रीलंका के आदिवासियों से मिलने के लिए वहां जाते हैं। आपको बता दें कि यह खबर “सेतु एशिया” नामक एक वेबसाइट ने दी है।
यह है कारण
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पौराणिक कथाओं की बात मानें तो ऋषि मातंग के साथ भगवान हनुमान का प्राचीन रिश्ता रहा है। वे ऋषि मातंग के आश्रम में ही पैदा हुए थे तथा बहुत सी शिक्षा वहां से ही ग्रहण की थी। आज भी अपने देश के दक्षिणी हिस्से में मातंग समाज के बहुत से लोग निवास करते हैं। ये लोग खुद को ऋषि मातंग का ही वंशज बताते हैं। सेतू एशिया वेबसाइट के अनुसार श्रीलंका में एक ऐसा कबीलाई समूह निवास करता है, जो दुनिया से बेहद कटा हुआ है। ये लोग श्रीलंका के पिदूरु पर्वत पर निवास करते हैं। वेबसाइट का कहना है कि 27 मई 2014 को भगवान हनुमान ने इन लोगों के साथ अपना आखरी दिन बिताया था तथा अब वे इन लोगों के पास 2055 में आएंगे। मान्यता यह है कि प्रभू श्रीराम के पृथ्वी से परमधाम जानें के बाद भगवान हनुमान दक्षिण भारत के जंगलों में रहने लगें। कुछ समय उन्होंने श्रीलंका के जंगलों में भी गुजारा था। वहां इन आदिवासियों ने उनकी खूब सेवा की थी तथा भगवान हनुमान ने उनको आत्मज्ञान का बोध कराया। उन्होंने आदिवासियों से यह भी कहा कि वे हर 41 वर्ष बाद उन लोगों को ज्ञान का पाठ पढ़ाने आया करेंगे। इसी को लेकर सेतू एशिया साइट ने यह दावा किया है कि हनुमान जी 27 मई 2014 को मिले थे।