आपने ऐसे बहुत से लोग अपने जीवन में देखे होंगे जिनके जीवन में जब कभी परेशानियां आती हैं तो वे जीवन से ही भाग खड़े होते हैं और देखने में तो यहां तक आया है कि कुछ लोग जीवन की परेशानियों से बचने के लिए ही मौत तक को गले लगा लेते हैं पर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो की अपने इरादों पर अटल रहते हैं जो भी परेशानियां जीवन में आती हैं उनको बहुत सरलता से आत्मसात कर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहते हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही व्यक्ति से मिलवा रहें हैं जो की अपने जीवन की जंग को जीत कर संतुष्ट जीवन व्यतीत कर रहा है। इस व्यक्ति का नाम है “लक्ष्मण राव” ।
लक्ष्मण राव नई दिल्ली में आई.टी.ओ. के पास विष्णु दिगम्बर मार्ग के एक पेड़ के पास ही अपनी चाय की दुकान लगाते हैं। देखा जाए तो लक्ष्मण राव बहुत ही सरल और सीधे व्यक्ति हैं और बहुत सी सादी वेषभूषा में रहते हैं पर सही बात यह है कि लक्ष्मण राव नाम के यह व्यक्ति अपने आप में एक बड़ी प्रतिभा हैं। असल में लक्ष्मण राव एक वरिष्ठ साहित्यकार हैं और 38 से ज्यादा साहित्य सम्मान इनको मिल चुके हैं। लक्ष्मण राव के अब तक अंग्रेजी, मराठी और हिंदी सहित कई भाषाओं में करीब 100 से भी ज्यादा साक्षात्कार छप चुके हैं और ये अब तक 24 पुस्तकें भी लिख चुके हैं। इतनी प्रतिभा का धनी और इतने साहित्य सम्मानों से सम्मानित व्यक्ति चाय बेच कर अपना जीवन चलाता है इस पर सहसा विश्वास नहीं होता है पर जब लक्ष्मण राव के बीते जीवन की कहानी को देखते हैं तब यह पता चलता है कि इतना सब होने के बाद में भी लक्ष्मण राव सिर्फ चाय बेच कर अपना जीवन निर्वाह क्यों कर रहें हैं।
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लक्षमण राव और उनका कठनाइयों भरा जीवन –
23 जुलाई, 1952 को महाराष्ट्र के जिले अमरावती के एक छोटे से गांव तड़ेगांव दशासर में लक्ष्मण राव का जन्म हुआ था। इन्होंने दिल्ली के तिमारपुर के पत्राचार स्कूल से उच्चतर माध्यमिक कक्षा पास करने के बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय से BA किया है और वर्तमान में 62 साल की उम्र में हिंदी साहित्य से MA कर रहें हैं। वैसे तो लिखने का शौक लक्ष्मण राव को बचपन से रहा है पर मराठी होने के बाद भी लक्ष्मण राव ने सैदव हिंदी को ही प्रमुखता दी। बचपन में लक्ष्मण राव के एक मित्र का निधन होने पर इन्होंने उसके ऊपर एक पूरा उपन्यास ही लिख दिया था।
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लक्ष्मण राव का महाराष्ट्र के अमरावती से दिल्ली तक का सफर बहुत ज्यादा परेशानियों से भरा रहा, इस बीच में जो भी छोटा-मोटा काम मिला करते रहें। भोपाल में 5 रूपए प्रति दिन के हिसाब से बेलदार काम भी लक्ष्मण राव ने अपनी दिल्ली की यात्रा के दौरान किया। 30 जुलाई 1975 को G.T EXPRESS से दिल्ली पहुंचे लक्ष्मण राव ने यहां पर 2 साल तक ढाबे पर बर्तन साफ करने का कार्य भी किया। इसके बाद में 1977 में आई.टी.ओ. के निकट विष्णु दिगम्बर मार्ग पर एक पेड़ के नीचे बीड़ी आदि बेचने की दुकान खोल ली हालांकि कई दिनों बाद दिल्ली नगर निगम ने इनकी उस दुकान को उजाड़ा पर लक्ष्मण राव अपने स्थान पर जमे रहें और धीरे-धीरे चाय भी बेचनी शुरू कर दी। लक्ष्मण राव का खुद प्रकाशन है जहां अब वें अपनी लिखी किताबे छापते हैं और आज वे अपने को सबसे ज्यादा संतुष्ट मानते हैं। उनके दो बेटे हैं जो की उस प्रकाशन का कार्य और देखभाल करते हैं। लक्ष्मण राव का जीवन उन लोगों के लिए एक मिसाल है जो यह अत्यधिक संसाधनों को ही जीवन के सफल और सुखी होने की मानसिकता रखते हैं, लक्ष्मण राव का जीवन यह शिक्षा देता है की कम संसाधन और सीमित आय किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन के लक्ष्य तक पहुंचने से नहीं रोक सकती हैं यदि वह जीवन से संघर्ष करने की ठान लेता है।