सावन माह के साथ कांवड़ यात्रा भी प्रारम्भ हो चुकी हैं। आपको बता दें की इस दौरान शिव भक्त लोग किसी पवित्र स्थान से गंगाजल कांवड़ में भर कर अपने निवास स्थान को पैदल आते हैं तथा शिव पूजन कर गंगाजल से अभिषेक करते हैं। इस यात्रा को कांवड़ यात्रा कहा जाता है। यह यात्रा बहुत कठिन हैं।
वैसे तो महाशिवरात्रि पर्व पर भी बहुत बड़ी संख्या में शिव भक्त कांवड़ लेकर आते हैं लेकिन सावन के माह में यह यात्रा बारिश के कारण अति दुष्कर और कठिन हो जाती है। इस यात्रा का प्रचलन प्राचीन काल से है। पुराणों में इस यात्रा को लेकर कई प्रकार की कथाएं तथा मान्यताएं उल्लेखित की गई हैं। आज हम आपको उन्ही कथाओं तथा मान्यताओं के बारे में यहां जानकारी दे रहें हैं। आइये जानते हैं कांवड़ यात्रा से जुड़ी पौराणिक कथाएं।
1 – रावण तथा परशुराम द्वारा कांवड़ यात्रा का प्रारंभ
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माना जाता है की जब भगवान शिव ने हलाहल विष का सेवन कर लिया था। तब उसके ताप से उनकी देह अति गर्म हो गई थी। भगवान शिव की देह को शांत करने के लिए उनके भक्त लंकापति रावण ने कांवड़ से जल लाकर भगवान शिव का अभिषेक किया था। इस प्रकार यह यात्रा शुरू हुई थी। इसी प्रकार कांवड़ यात्रा की शुरुआत के बारे में शिवभक्त परशुराम की कथा भी आती है। कहा जाता है की भगवान शिव के नियमित पूजन के लिए परशुराम में “पूरा महादेव” नामक एक सिद्ध स्थान की स्थापना की थी। इस स्थान की स्थापना के लिए उन्होंने कांवड़ से जल लाकर यहां अभिषेक किया था। मान्यता है की उस समय से ही इस यात्रा की शुरुआत हुई थी।
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2 – समुद्र मंथन से भी जुड़ी है यह यात्रा
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कांवड़ यात्रा समुद्र मंथन से भी जुड़ी पाई जाती है। इस संबंध में कथा है की जब समुद्र मंथन के प्रारंभ में हलाहल विष निकला तो सारी सृष्टि में उसके द्वारा हुए प्रदुषण के कारण हाहाकार मच गया। इस समय भगवान शिव ने ही उस विष को अपने गले में धारण किया तथा नीलकंठ कहलाएं। विष सेवन से उनके शरीर का तापमान बहुत ज्यादा बढ़ गया। इसके बाद सभी देवताओं ने गंगाजल से उनका अभिषेक कर उनके तापमान को कम किया था। उस समय से ही भगवान शिव पर गंगाजल का अभिषेक करने के लिए कांवड़ यात्रा की शुरुआत हो गई।
क्या है मान्यताएं –
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कांवड़ लाकर शिव अभिषेक करने को लेकर कई प्रकार की मान्यताएं हैं। माना जाता है की सबसे पहले परशुराम ने उत्तर प्रदेश के ब्रजघाट (गढ़ मुक्तेश्वर) से गंगाजल लाकर बागपत के निकट स्थित “पूरा महादेव” में भगवान शिव का अभिषेक किया था। तब से इस यात्रा की शुरुआत हुई है। आज भी दिल्ली तथा आसपास के क्षेत्र वाले लोग गढ़ मुक्तेश्वर से जल लाकर पूरा महादेव पर अभिषेक करते हैं। इस यात्रा को लेकर यह मान्यता भी है की इस यात्रा से आपकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। बहुत लोग अपनी मनोकामना पूरी होने पर कांवड़ लाते हैं। यह यात्रा उत्तर भारत के अलावा देश के हर हिस्से में प्रचलित है। सावन माह तथा शिवरात्रि पर्व पर लोग अपने आसपास के किसी पवित्र तीर्थ से गंगाजल लाकर भगवान शिव का अभिषेक करते हैं।