भारतीय स्वंतत्रता संग्राम में पुरुषों की भागीदारी बहुत ज्यादा रही हैं पर यह भी सच है कि महिलाओं ने भी इस स्वंतत्रता संग्राम में एक बड़ी संख्या में भाग लिया था। रानी लक्ष्मीबाई और रानी चेन्नमा जैसी कई महिलाओं ने अंग्रेजों से लड़ कर वीरगति पाई थी। इसके अलावा बहुत से ऐसे भी नाम हैं जिनको हम नहीं जान पाये, जो हमारे लिए गुमनाम हो गए, खैर वर्तमान समय में जो भी नाम हमारे सामने हैं उनके बारे में आज हम आपको बता रहें हैं ताकि आप जान सकें की हमारे देश के स्वंतत्रता संग्राम में महिलाओं की हिस्सेदारी भी बराबरी की ही रही है।
1- लक्ष्मी सहगल –
इनका जन्म 14 अक्टूबर 1914 को हुआ था, ये भारतीय स्वंतत्रता संग्राम की सक्रिय कार्यकर्त्ता रही और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की सेना “आजाद हिंद फ़ौज” की अधिकारी भी रही। इसके अलावा ये “आजाद हिन्द सरकार” में महिला मामलों की मंत्री भी रही थी। प्रोफेशन से लक्ष्मी सहगल एक डॉक्टर थी, जो की दूसरे विश्वयुद्ध के समय प्रकाश में आई थी। लक्ष्मी सहगल “आजाद हिन्द फ़ौज” की रानी लक्ष्मी रेजिमेंट की कमांडर रही थी। इसके बाद में 1943 में बनी अस्थाई “आजाद हिन्द सरकार” में लक्ष्मी सहगल पहली महिला केबिनेट मंत्री बनी थी। 4 मार्च 1946 को वह अंग्रेजो के द्वारा पकड़ी गई और कुछ समय बाद में उनको रिहा कर दिया गया। 1947 में इन्होंने “प्रेम कुमार सहगल” के साथ में विवाह कर लिया और वह कानपुर उत्तरप्रदेश में आकर बस गई। 23 जुलाई 2012 को इन्होंने अंतिम सांस ली।
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2- रानी चेन्नमा –
इनका जन्म 1778 में हुआ था, ये कित्तूर की रानी थी। इन्होंने अपने समय में अंग्रेजो के जमकर युद्ध किया और उनकी नीतियों का विरोध किया। अंग्रेजों की गुलामी के विरुद्ध रानी चेन्नमा ने अपने क्षेत्र में सबसे पहले आवाज उठाई थी। इनकी मृत्यु 1829 में हो गई थी।
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3- रानी लक्ष्मीबाई –
इनका जन्म 1835 में हुआ था, ये झासीं की रानी के नाम से विख्यात हैं। 1857 के पहले स्वंतत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई ने हिस्सा लिया और अंग्रेजों के साथ में संघर्ष किया। इसके बाद में वे लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गई। उनकी मृत्यु 1858 में हो गई थी।
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4- दुर्गा भाभी-
बहुत कम लोग जानते हैं कि “चंद्र शेखर आजाद” के कहने पर जिन “भगवती चरण वोहरा” ने “द फिलासफी ऑफ बम” नामक दस्तावेज तैयार किया था, इन्ही भगवती चरण वोहरा की पत्नी थी “दुर्गा भाभी”, ये एक महान क्रांतिकारी साबित हुई और महिलाओं की वीरता की मिसाल बनी। दुर्गा भाभी ने ही “भगत सिंह” को लाहौर जेल से छुड़वाने के लिए योजना बनाई थी। इससे पहले जब भगत सिंह और राजगुरु “लार्ड सांडर्स” को मारने के लिए निकले थे, तब भी सारी रणनीति दुर्गा भाभी ने ही बनाई थी। इसके अलावा 1927 में जब “लाला लाजपत राय” की मृत्यु का बदला लेने के लिए सभी क्रांतिकारियों की बैठक हुई थी, तो उस सभा की अध्यक्षता भी “दुर्गा भाभी” ने ही थी। मुंबई के गवर्नर को मारने की योजना में एक अंग्रेज अफसर भी गोली से घायल हो गया था, जिस पर “दुर्गा भाभी” ने ही गोली चलाई थी। इसके बाद में अंग्रेजों ने इसने खिलाफ वारंट इश्यू कर दिया और इनकी तलाश शुरू कर दी, पर 2 साल से भी ज्यादा समय तक दुर्गा भाभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आई। इसके बाद में 12 सितंबर 1931 को वह लाहौर में गिरफ्तार कर ली गई। बहुत कम लोग जानते है कि दुर्गा भाभी और भगत सिंह का जन्म 1907 में ही हुआ था।
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इस प्रकार के देखा जाए तो अपने देश में इस प्रकार की बहुत सी महिलाएं हुई हैं, जिहोंने देश को स्वतंत्र करने के लिए जीवन भर लड़ाई लड़ी और अपने जीवन को भी देश के लिए कुर्बान कर दिया, आज हम देश की 70 वीं वर्षगांठ के अवसर पर इन सब महिलाओं सहित प्रत्येक शहीद को श्रद्धांजलि देते हैं।