जहां एक ओर पाकिस्तान और भारत के संबंध में आपसी मनमुटाव के कारण तालमेल नही बैठ रहा। हमेशा युद्ध का खतरा बना रहता है। वहीं दूसरी ओर हमेशा से शांति का पैगाम पहुंचाने वाले भारत ने अपने भाईचारे की मिसाल एक बार फिर कायम की है। जिसके बाद पाकिस्तान के लोग भारत के किये गये इस काम की बार बार सराहना कर रहें हैं कि सचमुच भारत महान है।
एक पाकिस्तानी लड़की जो कई महीनों से अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पा रही थी आज वो ठीक होकर अपने देश जाने की तैयारी कर रही है।
15 साल की सबा अहमद विल्संस डिसीज़ जैसी खतरनाक बीमारी से जूझ रही थी। ये एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर के अलग-अलग अंगों में कॉपर जमा होने लगता है। इसके बाद मरीज़ का वो अंग धीरे-धीरे काम करना बंद कर देता है। पाकिस्तान में काफी इलाज करवाने के बाद भी उसकी हालत में कोई सुधार नही दिख पा रहा था। जिस पर लोगों की सलाह उसके परिवार वालों ने भारत जाने का फैसला किया। पर सबा की मां नाज़िया को पाकिस्तान के लोगों ने भारत जाने को मना करते हुये कहा था कि वो मुंबई में लोगों को न बताएं कि वो पाकिस्तानी हैं वर्ना उनसे अच्छा बर्ताव नहीं होगा।
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इसके बाद सबा के परिवार वाले किसी भी प्रकार से अपनी बेटी के इलाज के लिये भारत आये और उसका इलाज तुरंत ही शुरू कर दिया गया। पर इलाज काफी मंहगा होने के कारण वे हार चुके थे। इस बीमारी के इलाज की दवाइयां काफी मंहगी थी। लेकिन नाज़िया के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो इलाज का खर्च उठा सकें।
नाज़िया बताती है कि वो अपनी बेटी के इलाज के लिये सिर्फ अस्सी हज़ार रुपये लेकर मुंबई आई थीं और उनका बिल हो गया था दो लाख। अब उन्हें आगे के इलाज के लिये और हॉस्पिटिल के बढ़ रहे बिल को चुकाने के लिये पैसों की जरूरत पड़ रही थी।
जिसके लिये उन्होनें कराची में इस बीमारी के इलाज के लिये सहायता कि मांग की। पर वहां से न कोई फोन आया और न ही कोई सहायता। जिसका इंतजार सबा को हमेशा ही रहता था। पर ऐसे वक्त में उन्हें मदद मिली ब्लू बेल्स नाम के एनजीओ की संस्थापक शाबिया वालिया से। संस्था ने अप्रैल से जून के बीच में सबा के इलाज के लिये सात लाख की मदद की।
सबा कि मां नाज़िया ने बताया भले ही हमारे यहां पर भारत के लिये लोग कुछ भी कहें। पर भारत के लोग बहुत ही प्यार देने वालों में से हैं। यहां पर आने के बाद मुझे महसूस ही नही हुआ कि में किसी और देश में हूं। ऐसा ही लगा कि मैं पाकिस्तान में ही हूं। यहां तक कि लोग सबा के लिए छिपा कर खाना लाते थे। हर वक्त मेरी सहायता के लिये लोग खड़े ही रहते थे। जिस प्यार को पाकर कभी-कभी मैं रो भी पड़ती थी।
बस एक फोन का इंतजार
बताया जाता है। कि सबा का इलाज पूरी ज़िंदगी चलेगा। एक बार बीमारी स्टेबल हो जाए तो दवाइयां जारी रखनी होंगी। सबा के इलाज की सबसे बड़ी परेशानी है उसकी मंहगी दवा, जो एक बोतल एक लाख सत्तर हज़ार रुपये की मिलती है। मुबंइ के इस एनजीओ ब्लूवेल्स ने मुबई में रहने वालों से इसके इलाज को आगे बढ़ाने के लिये 7 लाख रू जमा किये इसके अलावा फेसबुक और व्हाट्सएप के द्वारा इतना प्रचार प्रसार किया गया कि भारत के अलावा दूसरे देश अनमेरिका के एनजीओ ने भी 4 लाख रू की राशि सबा के इलाज के लिये दी। आज सबा भारत के लोगों की यादों को समेटे हुये खुश और स्वस्थ होकर अपने वतल लौट रही है। पर कराची के फोन का इतंजार सबा कि मां को आज भी है। जिसकी उन्होनें बुरे वक्त में सहायता के लिये मांग की थी। जो उसे अभी तक नही मिली।