देश को ब्रिटिश सरकार की बेड़ियों से मुक्त करने वालों में शहीद भगत सिंह के बलिदानों को कौन नहीं जानता। इन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाकर देशवासियों को आजादी की नई राह प्रदान की थी। वर्ष 1928 में भगत सिंह पर ब्रिटिश सरकार के पुलिस विभाग के अफसर जेपी सांडर्स की हत्या का आरोप लगा था, लेकिन अब कुछ ऐसे तथ्य सामने आए हैं जिससे इस हत्याकांड में शहीद ए आजम भगत सिंह की बेगुनाही साबित हो सकेगी। इसके लिए पाक हाईकोर्ट में जल्द ही सुनवाई की जाएगी।
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ब्रिटिश सरकार के हाथों में पूरा भारत था। उस दौरान पाकिस्तान और हिन्दुस्तान एक ही राष्ट्र हुआ करते थे। भारत को आजाद कराने के लिए देशभर से क्रांतिकारी लोग अपनी-अपनी रणनीति तैयार कर रहे थे। इन सभी के बीच भगत सिंह ने छोटी सी उम्र में ही देश के प्रति अपनी भक्ति का साहस पेश कर दिया था। वर्ष 1928 में 17 दिसंबर को ब्रिटिश सरकार को वापस जाने का संदेश देने के लिए एक ब्रिटिश सरकार के पुलिस अफसर जेपी सांडर्स के हत्याकांड को अंजाम दिया गया था। इस हत्याकांड में शहीद भगत सिंह को भी दोषी माना गया था। बाद में ब्रिटिश सरकार ने अपने साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह करने के आरोप में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को साथ में वर्ष 1931 की 23 मार्च को फांसी दे दी थी, लेकिन अब करीब 85 वर्षों बाद शहीद भगत सिंह को बेगुनाह करार देने की याचिका पर पाक हाईकोर्ट सुनवाई करने जा रहा है।
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पाकिस्तान में भगत सिंह मेमोरियल फांउडेशन संस्था बनाई गई है। इस संस्था के अध्यक्ष इम्तिाज रशीद कुरैशी के द्वारा इस मामले को लेकर लाहौर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। इस याचिका को वर्ष 2013 में दायर किया गया था। जिस पर सुनवाई करते हुए इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेजा गया। संस्था के अध्यक्ष इम्तिाज रशीद ने वर्ष 2014 में इस मामले की एफआईआर की कॉपी प्राप्त की। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम ही दर्ज नहीं किया गया है। इसी कारण इम्तिाज ने शहीद ए आजम भगत सिंह को इस मामले में बेगुनाह करार दिए जाने की बात कही है। इस हत्याकांड वाले मामले की सुनवाई दोबारा जल्द ही शुरू होने जा रही है।