भीमकुंड – देश का यह कुंड आज भी वैज्ञानिको के लिए है पहेली

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Bhimkund well's depth still a mystery for scientists cover

प्रकृति के ऐसे बहुत से रहस्य हैं जिनके बारे में जानकर हैरानी होती है। आज हम आपको यहां एक ऐसे कुंड के बारे में जानकारी दे रहें हैं जिसकी गहराई का पता आज तक वैज्ञानिक भी नहीं लगा सकें हैं। यह कुंड पांडव काल से जुड़ा है। मान्यता है कि इस कुंड का निर्माण महाबली भीम ने किया था इसलिए इसको भीम कुंड के नाम से जाना जाता है। यह कुंड मध्य प्रदेश के सागर-छतरपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर है।

इतिहासकार डॉ. आरडी द्विवेदी इसके बारे में कहते हैं कि गोताखोरों ने कई बार भीम कुंड की गहराई को नापने का कार्य किया है, पर आज तक इसकी थाह का पता नहीं लग सका है। भू-गर्भ ज्ञाता शालिनी त्रिपाठी इसके बारे में कहती हैं कि “यह असल में एक शांत ज्वालामुखी है। सूर्य की किरणे पड़ने से यह मौर के पंख जैसी आभा ले लेता है तथा और भी आकर्षक बन जाता है। इसके पानी के करीब 80 फिट नीचे एक तेज जलधारा मिलती है जिसका जुड़ाव समुद्र से हो सकता है।

महाबली भीम ने निर्मित किया था यह कुंड –

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इतिहासकार बताते हैं कि जब पांडव यहां अपने बनवास का समय काट रहें थे, तो एक दिन रास्ते में द्रौपदी को प्यास लगी और कुछ समय बाद वह प्यास के कारण चलने में असमर्थ हो गई। महाबली भीम यह देख कर क्रोधित हुए कि उस समय इस स्थान पर कोई जल स्त्रोत्र नहीं था। तब उन्होंने अपनी गदा से जमीन पर प्रहार किया और इससे जमीन की ऊपरी परत टूट गई। इस स्थान पर कुछ जल की बूंदें भी दिखाई देने लगीं। इसके बाद में भीम ने अर्जुन से धनुर्विद्या का प्रयोग कर जल तक पहुंचने का मार्ग बनाने को कहा। इसके बाद अर्जुन की सहायता से जल तक पहुंचने का मार्ग तैयार हो गया तथा द्रौपदी को जल ग्रहण कराया गया। तब से इस स्थान को भीम कुंड के नाम से ही जाना जाता है।

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