वैसे तो भारत सहित दुनिया भर में देवी के अनेकों मंदिर स्थित हैं, पर आज जिस मंदिर के बारे में हम आपको बता रहे हैं वह बहुत ही चकित कर देने वाला है, क्योंकि यहां पर अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए आपको पत्थरों को टकराना होता है, आज भी बहुत से लोग यहां आते हैं। यह मंदिर तब से है जब भारत पर मुगल साम्राज्य का अधिपत्य था, आइए आपको बताते हैं इस मंदिर के बारे में।
सबसे पहले तो हम आपको यह बता दें कि ये मंदिर एक देवी का मंदिर है और यहां स्थित देवी को “माता टौणी देवी” के नाम जाना जाता है। यह मंदिर हमीरपुर-अवाहदेवी राष्ट्रीय राजमार्ग, हिमाचल प्रदेश में स्थित है। आपको हम यह भी बता दें कि इस मंदिर का निर्माण 300 वर्ष पूर्व किया गया था।
उस समय के इतिहास इस मंदिर के निर्माण की कहानी बताता है। माता टौणी देवी को चौहान वंश की कुल देवी माना जाता है और आज से 300 वर्ष पूर्व जब दिल्ली के तख्त पर मुगलिया हुकूमत थी, उस समय चौहान वंश सहित अन्य जातियों पर लगातार अत्याचार हो रहें थे, जिनसे बचने के लिए लोग बड़ी संख्या में पलायन के लिए मजबूर हो गए। इसी क्रम में चौहान वंश के 12 भाईयों ने हमीरपुर के इसी पहाड़ी क्षेत्र पर पनाह ली थी, जहां आज यह मंदिर स्थित है।
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इन 12 भाईयों के साथ इनकी बहन भी थी, जिसको सुनाई नहीं पड़ता था, इस बहन का नाम “टौणी” था। एक बार परिवार के मुख्य व्यक्ति ने बाकर कुनाह व पुंग खड्ड के केंद्र पर एक भवन बनाने का विचार किया और समय के साथ सभी की अनुमति से यहां एक शिला नींबू के रूप में रख दी थी, पर उस समय सभी चकित रह गए जब इस स्थान से खून की धारा बहने लगी।
इसके बाद में कुल पुरोहित से इसके बारे में पूछा गया तो उसने बताया कि इसका कारण एक कुंवारी कन्या है इसलिए सभी ने टौणी नामक अपनी बहन पर आरोप लगाया, जिसके कारण टौणी नाराज हो गई और एकांत में तप करने लगी और इसी अवस्था में वह आषाढ़ मास के 10 प्रविष्टे को अंतर्ध्यान हो गई।
“टौणी” की याद में सभी भाईयों ने बाद में छोटा सा मंदिर बनवा दिया था, जो आज विशाल रूप ले चुका है आज भी उत्तर प्रदेश सहित कई अन्य राज्यों से यहां चौहान वंश के लोग आते हैं और दर्शन करते हैं, चूंकि टौणी देवी को बचपन से सुनाई नहीं देता था इसलिए यहां लोग “पत्थर टकरा कर” अपनी मनोकामना मांगते हैं।