यहां पहली बार विधवाओं ने मंदिर में खेली होली

0
385

भले ज़माना कितना ही आगे क्यों ना बढ़ गया हो, लेकिन आज 21वीं सदी में भी विधवाओं की स्थिति में कोई ख़ास सुधार देखने को नहीं मिलता। आज भी देश में कई काम ऐसे हैं जिन्हें एक विधवा को करने की इजाज़त नहीं है। रंगों का त्योहार होली आने वाला है, मगर विधवाओं के होली खेलने पर आज भी मनाही है।

लेकिन सैकड़ों साल पुरानी परंपरा का खंडन करते हुए सोमवार को वृन्दावन के एक काफी प्राचीन मंदिर में कई सौ विधवाओं ने एकसाथ होली खेली। यह होली यहां के प्राचीन गोपीनाथ मंदिर में खेली गई। यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। विधवाओं ने इस मौके पर पूरी श्रद्धा के साथ भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण किया और रंग और सूखे फूलों के साथ होली खेली।

holiImage Source: http://images.indianexpress.com/

वृन्दावन की विधवाओं के साथ-साथ वाराणसी की विधवा महिलाओं ने भी होली खेलने का आनंद लिया। इस मौके पर सभी विधवा महिलाएं काफी खुश नज़र आ रही थीं। सभी ने एक-दूसरे को खुशी से रंग लगाए। इस दौरान सभी के चेहरों पर ख़ुशी साफ़ नज़र आ रही थी। यह पहला ऐसा मौक़ा था जब वृन्दावन के किसी मंदिर में विधवाओं को होली खेलने का अवसर प्राप्त हुआ।

इनमें से अधिकतर विधवाओं को उनके परिवारों द्वारा त्याग दिया गया है। इसलिए समाज के बीच होली मनाकर उन्हें जो सम्मान मिला, इससे वह काफी खुश नज़र आईं। इस मौके पर कई संस्कृत के विद्वान व विद्यार्थी भी मौजूद थे। साथ ही सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक व देश के जाने-माने सोशल वर्कर बिन्देश्वर पाठक भी इस अवसर पर मौजूद थे। वह देश में विधवा विरोधी मान्यताओं के खिलाफ कई अभियान चला चुके हैं और अभी भी इस तरह की कुरीतियों के विरुद्ध खड़े हैं।

holi1Image Source: http://l1.yimg.com/

सुलभ इंटरनेशनल पिछले कुछ सालों से वृन्दावन व वाराणसी की 1500 विधवा महिलाओं की देखरेख में लगा है। बिन्देश्वर पाठक ने बताया कि तीन वर्षों से सुलभ इंटरनेशनल विधवा महिलाओं के लिए होली के कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है, लेकिन इस बार की होली ख़ास थी क्योंकि समाज से स्वीकृति प्राप्त करने के लिए इस बार की होली का आयोजन एक लोकप्रिय मंदिर में रखा गया था।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here