बच्चों को दुष्प्रवृत्तियों की ओर बढ़ाता वीडियो गेम्स

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एक समय था जब बच्चे अपने दादा-दादी, नाना-नानी की गोद में बैठकर परियों की कहानी सुना करते थे और उसी परियों और राजाओं की कहानियों में खो कर सुनहरे संसार की इस रंगीन दुनिया को अपने सपनों में सच करते थे। कभी दादी-नानी चंदा मामा की कहानी सुनाते तो कभी चांद की ओर इशारा कर सूत कातती बुढ़िया को दिखाते। कई युग बीत गए पर चांद की वह छाया आज भी बरकरार है।

Video Sorce:https://www.youtube.com

दिन बदला, समय बदला जब बच्चे बड़े हुए और स्कूल कॉलेज गए तो उन्हें पता चला कि वह किसी बुढ़िया की शक्ल नहीं बल्कि चांद पर पड़ने वाली किसी ग्रह की छाया है। आज दादी-नानी की वो रोचक कहानियां किसी घरौदों में सिमट कर रह गई हैं। आज की इस आधुनिकता की दौड़ में कहानियों का स्थान कम्प्यूटर ने ले लिया और दादा, दादी का स्थान वृद्धाश्रमों में बदल गया। अगर कुछ सौभाग्यशाली दादा-दादी बच गए तो तो अपने घरों के किसी एक कोने में सिमट कर रह गए और इसी के साथ लुप्त हो गई बच्चों की ज्ञान से भरपूर कहानियां..

फैशन की इस नई सोच ने बच्चों को पुरानी पीढ़ी से पूरी तरह से काट दिया है। उन्होंने अपनी एक नई दुनिया बसा ली है। वह दुनिया जहां टीवी चैनल्स उनके दिमाग और सोच पर डाका डालते हुए पूरी तरह से हावी हो चुके हैं वहीं, विडियो गेम्स में दिख रहे हिंसक कार्टून, ऊल जलूल और दिमाग को गलत बातों की ओर मोड़ने वाले कंप्यूटर गेम्स, जिसका असर बच्चों के दिमाग को प्रभावित करता है। उनकी सोच पर भी इसका गहरा असर होता है। उनके बौद्धिक विकास में भी बाधा पड़ती है।

अगर माना जाए तो बच्चों में यह बदलाव उस माहौल, उस परिवेश से आया है जिसमें आज के बच्चे पल रहे हैं, क्योंकि आज के समय में बच्चों के माता पिता के पास उनके लिए कोई वक्त नहीं है जो उन्हे सही मार्गदर्शन दे सकें। ऐसे समय में बच्चे या तो नौकरों के बीच पलते हैं या फिर जिस तरह चाहते हैं वैसे रहते हैं। इस तरह से खाली समय में उनका समय विडियो गेम्स जैसे हिंसक कार्टून या कंप्यूटर गेम्स को देखने में बीतता है और वे इसी में पूरे दिन उलझे रहते हैं।

 

Video Sorce:https://www.youtube.com

बच्चों के दिमाग में इससे से भी अधिक जहर फैला रहा है इंटरनेट, जो आज हर बड़े घरों में प्रवेश कर चुका है। इसके जरिए बच्चों और किशोरों की पहुंच अश्लील साइट्स तक हो गयी है। पश्चिम की यह बीमारी हमारे देश में भी पांव पसार चुकी है और इससे किशोर मन दूषित हो रहा है और विकृत हो रही है उनकी सोच। आज जितने भी कंप्यूटर गेम्स हैं चाहे वह प्रिंस आफ पर्सिया हो, डूम थ्री डी, प्रोजेक्ट आईजीआई इन सबके प्रमुख चरित्र या चरित्रों को किसी ना किसी से लड़ाई करनी होती है। चरित्र की लड़ाई जो बच्चे अपने कंप्यूटर स्क्रीन पर देख रहे होते हैं उसे देख इतने उत्साहित हो जाते हैं कि हाथ में माउस या जॉय स्टिक के द्वारा उस लड़ाई की कमांड पूरी तरह से संभाल लेते है।

एक तरह से पूरी लड़ाई वह बच्चा ही खेलता है। इस लड़ाई में दुश्मनों को मार कर जीत हासिल करनी होती है। दुश्मनों को मारने के बाद बच्चों के चेहरे पर तुरंत तो चमक आती है, लेकिन साथ-साथ हिंसा और क्रूरता के बीज धीरे-धीरे उनके दिलों दिमाग में छाने लगते हैं, जिसका पता ना तो बच्चों को लगता है और ना ही उनके माता-पिता को। माता-पिता यह जानकर खुश होते हैं कि उनका बच्चा कंप्यूटर पर बैठकर कुछ सीख रहा है, लेकिन वह तो कुछ ऐसा सीख रहे होते हैं जो बच्चों को ऐसी राह की ओर मोड़ रहा है जो किसी भी तरह से ना तो अच्छा है और ना ही सुखदपूर्ण।

Pratibha Tripathi
Pratibha Tripathihttp://wahgazab.com
कलम में जितनी शक्ति होती है वो किसी और में नही।और मै इसी शक्ति के बल से लोगों तक हर खबर पहुचाने का एक साधन हूं।

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