सच्चे प्रेम की बातें करने वाले बहुत हैं लेकिन इसे पूरे मन से निभाने वाले कम ही लोग हैं… जब कभी भी प्रेम कथाओं का जिक्र होता है, तब आज भी मांडू के लोग रानी रूपमती और बाज बहादुर को याद करना नहीं भूलते। मांडू, विंध्यांचल पर्वत पर बसा है। विंध्यांचल की पहाड़ियों पर आज भी रानी रूपमती और बाज बहादुर के प्यार के स्वर गूंजते हैं, लेकिन दोनों की प्रेम कहानी शहंशाह अकबर के कारण अधूरी ही रह गई।
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दरसल रानी रूपमती सिर्फ नाम से ही नहीं बल्कि सच में काफी रूपवान थीं। साथ ही उनकी आवाज़ भी काफी सुरीली थी। वह बहुत अच्छा गाना गाया करती थीं। जब रानी की इन खूबियों के बारे में शहंशाह अकबर को पता चला तो उसे रूपमती से प्यार हो गया।
रूपमती को पाने की इच्छा से उसने बाज बहादुर को एक पत्र भेजा, जिस पर लिखा था रानी रूपमती को दिल्ली के दरबार में भेज दो। इस पत्र को पढ़कर बाज बहादुर क्रोधित हो गए और उन्होंने अकबर को पत्र लिखकर कहा कि वह अपनी रानी को यहां भिजवा दें। अपने पत्र का ऐसा जवाब पढ़ कर अकबर आग बबूला हो गया।
रानी ने निगल लिया हीरा और अपनी जान दे दी
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गुस्से और अहंकार से भरे अकबर ने अपने सिपहसालार आदम खां से मालवा पर हमला करने को कहा। इसके बाद भयंकर युद्ध हुआ और अकबर ने बाज बहादुर को बंदी बना लिया। इसके बाद अकबर के सिपाही रानी रूपमती को लेने मांडू की ओर चल पड़े, लेकिन जब इस बारे में रानी रूपमती को पता लगा तो उन्होंने खुद को अकबर के हाथों में सौंपने से अच्छा अपनी जान देना समझा। उन्होंने हीरा निगल लिया, जिससे उनकी जान चली गई।
बाज बहादुर ने मज़ार पर त्याग दिए अपने प्राण
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जब रानी की मौत का समाचार अकबर को मिला तो उसे बहुत दुख हुआ। वह पछतावे की अग्नि में जलने लगा। उसने बाज बहादुर को कैद से आज़ाद कर दिया। बाज बहादुर ने कहा कि वह वापस सारंगपुर जाना चाहते हैं। सारंगपुर वापस आने पर बाज बहादुर ने रानी की मज़ार पर सिर पटक-पटक कर अपने प्राण त्याग दिए।
इस घटना के बाद अकबर को अपने किए पर काफी शर्मिंदगी हुई, उसने पश्चाताप करने के लिए सन् 1568 में सारंगपुर के समीप एक मकबरे का निर्माण करवाया। बाज बहादुर के मकबरे पर अकबर ने ‘आशिक ए सादिक’ और रूपमती की समाधि पर ‘शहीदे ए वफा’ लिखवाया।