पेड़ पौधें आपने बहुत से देखे ही होंगे, पर क्या आपने किसी ऐसे पेड़ को देखा है जो आपकी मनोकामना को पूर्ण कर देता हो? यदि नहीं, तो आज हम आपको एक ऐसे ही पेड़ के बारे में यहां जानकारी दे रहें हैं। सबसे पहले हम आपको बता दें कि देव भूमि के नाम से प्रसिद्ध हिमाचल प्रदेश में एक गुरुद्वारा है, जिसका नाम “टोका साहिब” है। यह गुरुद्वारा औद्योगिक क्षेत्र कालाअंब से कुछ दूरी पर स्थित है और यह सिख समुदाय के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी से संबंध रखता है। असल में 24 मई, 1689 को गुरु गोबिंद सिंह जी पांवटा साहिब की जंग जीतकर, यहां आये थे तथा इस स्थान पर ही उन्होंने 13 दिन विश्राम किया था, इसलिए यह गुरुद्वारा सिख समुदाय के लोगों की विशेष आस्था का केंद्र बना हुआ है।
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इस गुरुद्वारे के अंदर गोबिंद सिंह जी के जीवन से जुड़ी कई घटनाओं तथा निशानियों को चित्रों के माध्यम से अंकित किया गया है। साथ ही गुरूद्वारे की उत्तर दिशा के सामने एक विशेष स्थान भी है, जहां पर गोबिंद सिंह जी ध्यान साधना करते थे। इस प्रकार से यह गुरुद्वारा गुरु जी के जीवन तथा उनके आध्यात्म का जीवंत प्रतीक है। यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि अपने प्रवास के दौरान गुरु गोबिंद जी ने एक बार आम चूस कर उसकी गुठली यहां फेंक दी थी, जो समय के साथ एक वृक्ष के रूप में परिणत हो गई और इसी गुठली से आज एक बड़ा वृक्ष बन चुका है।
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लोगों की मान्यता है कि आज भी यदि कोई सच्चे दिल से इस वृक्ष से कुछ मांगता है तो उसकी मनोकामना अवश्य पूरी हो जाती है। प्रवास के दौरान ही गुरु गोबिंद जी के घोड़े को गांव के कुछ स्थानीय लोगों ने चुरा लिया था, पर जब वह उस घोड़े को बेचने के लिए गए, तो अन्य लोगों ने घोड़े को पहचान लिया तथा गुरु के पास पहुंचा दिया, पर गुरु जी ने गांव के लोगों को चोरी करने के लिए दंड स्वरुप इस क्षेत्र के लोगों को श्राप दिया कि “तुमको हमेशा टोटा बना रहें” यानि तुमको हमेशा जीवन में कमी बनी रहेगी। इस श्राप के बाद गांव उजड़ गया तथा लोगों का पलायन शुरू हो गया, पर बाद में गांव वालों ने अपनी भूल स्वीकारी तथा माफी मांगी। उसके बाद इस क्षेत्र में धीरे-धीरे तरक्की होना शुरू हुई। टोटे यानि कमी के श्राप के कारण ही इस गुरुद्वारे का नाम पहले टोटा साहिब पड़ा तथा यही बाद में टोका साहिब में बदल गया। वर्तमान में भी इस गुरूद्वारे की सेवा इसके आसपास के 12 गांव मिलकर करते हैं तथा हर पूर्णमासी को इस 12 में से एक गांव इस गुरूद्वारे की सेवा करने की जिम्मेदारी लेता है।