टेक्टोनिक भूकंप पृथ्वी के ऐसे किसी भी भाग में आ सकते हैं जहां धरती के नीचे दो प्लेटों के बीच पर्याप्त मात्रा में घर्षण होता है और उससे पैदा होने वाली ऊर्जा धरती के नीचे स्टोर होती रहती है। धरती के नीचे काफी गहराई में दो प्लेटें आपस में जुड़ी होती हैं, जो धरती पर सबसे बड़े दोष वाली सतह बनती है। ये प्लेटें एक दूसरे से असामान्य रूप से रगड़ खाती हैं। इस घर्षण से जबरदस्त ऊर्जा पैदा होती है, लेकिन इस ऊर्जा को निकलने के लिए जगह की तलाश होती है। इससे पैदा होने वाली ऊर्जा धरती के भीतर तब तक जमा होती रहती है जब तक तनाव पर्याप्त मात्रा में बढ़कर सामन्य से आसामान्य ना हो जाए। धरती की सतह के नीचे जमा हुई ऊर्जा धरती के ऊपरी सतह पर कमजोर हिस्से से अचानक निकलने लगती है और यही कारण बनता है भूकंप का।
तनाव के बनने की यह प्रक्रिया अचानक भूकंप की विफलता के कारण होती है। इसे (Elastic-rebound theory) कहते हैं। वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि भूकंप की कुल ऊर्जा का 10 फीसदी या इससे भी कम सिस्मिक ऊर्जा के रूप में फैलती है। भूकंप के दौरान ज्यादातर यही ऊर्जा जमीन को क्रैक करने में मदद करती है।
सदी का सबसे भीषण भूकंप
भूकंप के इतिहास में पिछले 200 साल में सबसे भयंकर भूकंप दुनिया ने देखा 12 जनवरी 2010 में कैरेबियाई देश हैती में। इस भूकंप से हजारों लोग मलबे के नीचे दब गए। सबेर-सबेरे आए इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर सात मापी गई थी। भूकंप के झटकों से हैती का राष्ट्रपति भवन बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। भूकंप का केंद्र राजधानी से 16 किलोमीटर दूर धरती की सतह से 10 किलोमीटर नीचे था। भूकंप के तत्काल बाद 5.9 और 5.5 तीव्रता वाले दो और झटके महसूस किए गए, जिन्हें आफ्टर शॉक बोला जाता हैं। इस भीषण भूकंप ने हैती में मौत का ऐसा तांडव मचाया कि पूरी दुनिया हिल गई थी।
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क्या पशु पक्षियों को होता है भूकंप का आभास ?
प्राकृतिक आपदा आने का पूर्वानुमान इंसानों को हो या ना हो, लेकिन जानवरों में जबरदस्त क्षमता होती है, उनका सिक्स्थ सेंस कमाल का होता है। भूकंप आने से थोड़ी देर पहले पालतू या जंगली जीवों को भूकंप का पूर्वाभास हो जाता है। गुजरात और जबलपुर में आए भूकंप का वैज्ञानिक विश्लेषण करने वाले कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि भूकंप आने से पहले घरों के पालतू जानवर और तोते चीखने चिल्लाने लगते हैं। इन जीवों की बेचैनी को कई परिवारों ने महसूस किया और उस पर रिएक्ट करने वाले परिवारों का नुकसान कम हुआ। ठीक इसी तरह अंडमान में रहने वाले कुछ आदिवासी जो पूरी तरह से नेचर के करीब हैं 2004 में आई सुनामी के दौरान उन्हें इलाके में आने वाली दैवीय आपदा का जैसे पहले से आभास हो गया था और वे सुनामी आने से पहले ही मैदानी इलाकों को छोड़ कर ऊंची जगहों पर चले गए थे। बाद में मुआयना करने पर अदिवासियों की आबादी सुरक्षित मिली।
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हालांकि, वैज्ञानिकों ने अभी तक कोई ऐसी तकनीकि इजाद नहीं की है जो भूकंप की सटीक भविष्यवाणी कर सकें, लेकिन अंडमान की ओंगेस और महज 40 लोगों की आबादी वाली ग्रेट अंडमानीज जनजाति सुनामी से सुरक्षित बच गई थी।