सामने आया उड़नतश्तरी का रहस्य, वैदिक काल में भारत में होता था उपयोग

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आज के समय में विज्ञान कितना भी बढ़ गया हो पर वह आज भी एलियंस या UFO के बारे में सही जानकारी नहीं जुटा पाया है, वहीं दूसरी ओर UFO के बारे में यह खुलासा हुआ है कि UFO वैदिक काल में भी होते थे और इनका उपयोग भी किया जाता था। इसके साक्ष्य भी हमें मिले हैं। जी हां, आज जहां दुनिया के वैज्ञानिक लोग UFO को दूसरे ग्रह से जोड़ कर देख रहें हैं वहीं इस बात के पुख्ता सबूत मिला हैं कि UFO का उपयोग भारत में वैदिककाल में किया जाता था। आइए जानते हैं UFO को पौराणिक समय के इसिहास से।

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यदि आप रामायण का अध्ययन करते हैं तो आपको उसमें दो विमानों का वर्णन मिलता है जो की दिव्य थे। पहला विमान था “पुष्पक विमान” जिससे रावण देवी सीता को अपने साथ ले गया था और दूसरे को भगवान श्री राम को युद्ध के समय दिया गया था, जो की युद्ध के बाद में वापस दिव्यलोक चला गया था।

ये दोनों ही विमान इसको चलाने वाले के निर्देशों पर कार्य करते थे, ये विमान कुछ विशेष मंत्रों से संचालित होते थे और जिस व्यक्ति ने इन मंत्रों को साध्य लिया होता था, उसके निर्देश पर यह विमान चलते थे।

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इन दोनों विमानों को आप UFO कह सकते हैं क्योंकि इनमें वह सभी तकनीकी गुण थे जो एक उड़नतश्तरी में होते हैं। इसके बाद में हम आते हैं भारत में आई वैमानिक तकनीक की ओर, आपको जानकार आश्चर्य होगा कि वैदिक काल में यह वैमानिक तकनीक भारत में विकसित हो चुकी थी, जो इस प्रकार के यान बनाने में सक्षम थी, जिनसे आप अन्य ग्रहों का सफर आसानी से तय कर सकते थे। इस वैमानिक विज्ञान को वैदिक युग में ऋषि भारद्वाज ने खोजा था और उसको अपने ग्रंथ “‘वैमानिक शास्त्र” में लिखा था, जो की ऋषि भरद्वाज द्वारा लिखित “यंत्र-सर्वेश्वम्” ग्रंथ का एक भाग है। इसके अलावा ऋषि भारद्वाज ने “अंशु-बोधिनी” नामक एक अन्य ग्रंथ भी लिखा था जिसमें “ब्रह्मांड विज्ञान” का जिक्र है। वर्तमान में श्रीलंका की “रामायण अनुसंधान कमेटी” ने रावण के चार एयरपोर्ट भी खोज लिए हैं, यह एयरपोर्ट इस कमेटी ने अपने 9 वर्ष के अनुसंधान के दौरान खोजे। खोजे गए इन चार एयरपोर्ट के नाम “उसानगोडा, गुरुलोपोथा, तोतुपोलाकंदा तथा वरियापोला” हैं। माना जाता है कि इनमें से “उसानगोडा” हवाई अड्डा रावण का निजी एयरपोर्ट था। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि यूएफओ की तकनीक का आधार हमारे ही देश में हुआ था तथा इसका उपयोग भारत में अच्छे से किया जाता था, पर वर्तमान में दुनियाभर के वैज्ञानिक यूएफओ की तकनीक को जानने के लिए ब्रह्मांड सहित पूरी दुनिया में खोज करते फिर रहें हैं। यह हमारा ही दुर्भाग्य है कि इस तकनीक को हमारी पिछली पीढ़ी आगे की ओर स्थानांतरित नहीं कर सकी।

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