मुहर्रम के दिन होली मानाने का यह किस्सा आपको हिन्दू मुस्लिम भाईचारे की ओर ले जाता है

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होली हिंदू धर्म का त्योहार है और असत्य पर सत्य की जीत की खुशी में यह मनाया जाता है। आज हम आपको होली के इस त्योहार का ही वह अनोखा किस्सा बता रहें हैं, जब लखनऊ के नवाब ने मुहर्रम के दिन सारे शहर में होली का त्योहार मनवाया था। उत्तर प्रदेश के अवध का यह किस्सा आपको हिन्दू मुस्लिम लोगों के बीच एक दूसरे की भावनाओं की कद्र करना सिखाता है। यह किस्सा उस समय का है जब लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह थे। उनके समय में एक बार ऐसा हुआ जब होली तथा मुहर्रम दोनों ही एक दिन पड़ गए। आप जानते ही हैं कि मुहर्रम एक मातम का पर्व है जब कि होली खुशी को जाहिर करता पर्व है।

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इस अवसर पर हिन्दू लोगों ने मुस्लिम लोगों की भावनाओं की कदर करते हुए, उस वर्ष होली न मनाने का फैसला लिया। जब मुहर्रम का जुलूस पूरा हो गया, तब नवाब वाजिद अली ने पूछा कि इस वर्ष शहर में होली क्यों नहीं मनाई गई, तब उनके अधिकारियों ने कहा कि इस वर्ष होली तथा मुहर्रम के त्योहार एक ही दिन थे, इसलिए शहर के हिंदू लोगों ने मुस्लिम लोगों की भावनाओं की कद्र करते हुए इस बार होली के त्योहार को न मनाने का फैसला किया था, इसलिए ही इस वर्ष होली नहीं मनाई गई। वाजिद अली ने कहा कि हिंदू लोगों ने मुस्लिम लोगों की जन भावनाओं की कद्र की है, इसलिए मुस्लिम लोगों का भी फर्ज बनता है कि वे हिंदू लोगों की भावनाओं का कद्र करें और इसलिए हमने फैसला लिया है कि आज के दिन पूरे अवध में होली का त्योहार मनाया जाए। इसके बाद उस दिन होली का त्योहार मनाया गया और नवाब वाजिद अली शाह भी इस त्योहार में शरीख हुए। इस प्रकार मुहर्रम के दिन ही होली भी खेली गई थी। यह किस्सा यह बताता है कि हिन्दू तथा मुस्लिम यदि एक दूसरे की भावनाओं की कद्र करें और एक दूसरे को सहयोग दें, तब दोनों साथ में रहकर देश का विकास करने में सहयोगी बन सकते हैं।

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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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