आदिकाल से लेकर आज तक जीवित हैं आठ चिरंजीवी

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हिन्दू संस्कृति में कुछ ऐसी बातों की भी प्रमाणिकता मिलती है जिसे लोग केवल ख्वाबों की ही बातें कहेंगे। भारतीय हिन्दू धार्मिक ग्रंथ इस बात की पुष्टि करते हैं कि कुछ चिरंजीवी ऐसे भी हैं जो आदिकाल से आज तक जीवित और इस पृथ्वी पर विद्यमान हैं। योग में अष्ट सिद्धियों की बात कही गई है। इन सिद्धियों के बल पर एक समान्य व्यक्ति भी अपनी मृत्यु पर विजय प्राप्त कर सकता है। पुराणों की मानें तो कहा जाता है कि भगवान हनुमान, भगवान परशुराम, बलि, व्यास, कृपाचार्य, विभीषण और अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं। ये सभी सातों महा मानव चिंरजीवी हैं।

शास्त्रों में तो यह भी कहा गया है कि अगर इन सातों महामानवों के साथ ऋषि मार्कण्डेय का नित्य स्मरण किया जाए तो मनुष्य को सभी रोगों से मुक्ति मिलती है और आयु भी सौ वर्षों की हो जाती है। यह सभी किसी न किसी वचन, नियम और श्राप से बंधे हुए हैं। आज हम इन्हीं महा शक्तिशाली पुरुषों के बारे में आपको बताने जा रहे हैं।

1 परशुराम
परशुराम को भगवान विष्णु का छठां अवतार कहा जाता है। भगवान परशुराम का जन्म हिन्दी पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। इसी कारण से वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है। ऋषि जमदग्नि और रेणुका परशुराम के माता, पिता थे। पहले परशुराम जी का नाम केवल राम ही था। इन्होंने शिव की कठोर तपस्या की थी। जिस तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने इन्हें एक फरसा (विशेष प्रकार का हथियार) प्रदान किया था। तभी से इन्हें परशुराम कहा जाने लगा। परशुराम जी रामायण और महाभारत के दौरान भी मौजूद थे। परशुराम ने 21 बार पृथ्वी से समस्त क्षत्रिय राजाओं का अंत किया था। चिंरजीवी होने के कारण ही परशुराम आज भी इस धरती पर विद्यमान हैं।

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2 हनुमान
त्रेता युग में भगवान राम के सहायक और रामायण में एक अहम भूमिका निभाने वाले भगवान हनुमान को भी युगों-युगों तक जीवित रहने का वरदान मिला है। हनुमान जी ने बाल काल से ही अपनी लीला से लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया था। शिव के रुद्र अवतार के रूप में हनुमान का जन्म हुआ। अष्ट सिद्धी और नव निधि को एक साथ धारण करने वाले केवल हनुमान ही हैं। रामायण के अलावा द्वापर युग में महाभारत काल में भी हनुमान जी का प्रसंग आता है, जिसमें भीम उन्हें मार्ग से पूंछ हटाने के लिए कहते हैं और बाद में भीम अपनी पूरी ताकत से भी हनुमान की पूंछ हिला भी नहीं पाते। दरअसल अशोक वाटिका में राम का संदेश सुनने के बाद माता सीता ने उन्हें चिंरजीवी रहने का आशीर्वाद दिया था। वहीं राम ने भी कलियुग के प्रभाव को कम करने के लिए हनुमान को धरती पर ही रहने के लिए कहा था।

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3 ऋषि व्यास
ऋषि व्यास ऋषि पाराशर और सत्यवती के पु़त्र थे। इनका जन्म यमुना नदी के एक द्वीप पर हुआ था। इन्हें कृष्ण द्वैपायन और वेद व्यास के नाम से भी जाना जाता है। इन्होंन ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद, सभी 18 पुराणों सहित महाभारत और श्रीमद्भागवत् गीता की रचना की थी। इनकी माता ने बाद में शान्तनु से विवाह किया और उनके दो पुत्र हुए। इनमें से बड़ा पुत्र चित्रांगद युद्ध में मारा गया और छोटा विचित्रवीर्य संतानहीन मर गया। माता के आग्रह करने पर वेद व्यास ने विचित्रवीर्य की दोनों सन्तानहीन रानियों द्वारा नियोग के नियम से दो पुत्र उत्पन्न किए जो धृतराष्ट्र तथा पाण्डु कहलाए, इनमें तीसरे विदुर थे।

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4 बलि
शास्त्रों के अनुसार राजा बलि भक्त प्रहलाद के वंशज हैं। बलि सतयुग के भगवान वामन के अवतार के समय हुए थे। इन्होंने इदंरलोक पर चढ़ाई कर विजय प्राप्त कर ली थी। राजा बलि एक दानी के रूप में भी जाने जाते हैं। एक बार राजा बलि को घमंड हो गया। ऐसे में भगवान ने ब्राह्मण का रूप धारण कर राजा से तीन पग धरती मांगी। राजा ने कहा मैं दान में देता हूं। तभी ब्राह्मण ने दो पग में तीनों लोकों को नाप लिया। अंत में एक पग राजा बलि के सिर पर रख दिया और उसे पाताल लोक भेज दिया। राजा बलि को भी चिरंजीवी होने का आशीर्वाद मिला था।

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5 विभीषण
महाभारत का युद्ध शुरू होने से पूर्व ही रावण के भाई विभीषण ने रावण से सीता को छोड़ने का आग्रह किया था। विभीषण राम का भक्त था। इसी कारण से रावण ने विभीषण को लंका से निकाल दिया था। जिसके बाद विभिषण ने भगवान राम का साथ दिया। रावण वध के दौरान अपनी विशेष भूमिका निभा कर अधर्म को मिटाने में राम का सहयोग किया।

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6 अश्वत्थामा
ग्रंथों में भगवान शंकर के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है। इन अवतारों में अश्वत्थामा ही एक ऐसा अवतार हैं जो आज भी पृथ्वी पर अपनी मुक्ति के लिए प्रयास कर रहा है। महाभारत में गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने युद्ध में कौरवों का साथ दिया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने उतरा के गर्भ के बालक की मृत्यु के लिए ब्रह्मास्त्र चलाने के कारण अश्वत्थामा को चिरकाल तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था।

बताया जाता है कि मध्य प्रदेश के बुरहानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर एक किला है। जिसे असीरगढ़ का किला कहते हैं। किले में एक भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि अश्वत्थामा प्रतिदिन इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने आते हैं।

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7 कृपाचार्य
कृपाचार्य अश्वत्थामा के मामा और कौरवों के कुलगुरु थे। शिकार खेलते हुए शांतनु को दो शिशु प्राप्त हुए। उन दोनों का नाम कृपी और कृप रखकर शांतनु ने उनका लालन-पालन किया। महाभारत युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की ओर से सक्रिय थे। मान्यता है कि कृपाचार्य भी चिरंजीवी हैं।

8 ऋषि मार्कण्डेय
ऋषि मार्कण्डेय भगवान शिव के भक्त थे। इन्होंने अपनी तपस्या से शिवजी को प्रसन्न किया और महामृत्युंजय मंत्र को सिद्ध कर लिया। इस मंत्र का प्रयोग अकाल मृत्यु से बचने के लिए किया जाता है।

भारतीय शास्त्रों और पुराणों के ये पुरुष किसी ख्वाबों की दुनिया के व्यक्ति नहीं है। इनके विषय में कई ग्रंथ बताते हैं। साथ ही यह ग्रंथ अपनी बात की प्रमाणिक पुष्टि भी करते हैं। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इन सातों चिरंजीवियों के साथ ही ऋषि मार्कण्डेय का नित्य स्मरण करता है वो रोगों से मुक्त रहता है और इन्हीं की तरह चिरंजीवी हो जाता है।

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