एक हिन्दू ने लिया 105 साल पुरानी कुरान की हिफाजत का जिम्मा

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कुरान महज इस्लाम की पवित्र पुस्तक ही नहीं, बल्कि इस्लाम की नींव है। जिसे अल्लाह ने फरिश्ते जिब्राएल द्वारा हजरत मुहम्मद को सुनाया था। मुसलमान लोग इसे अल्लाह की भेजी गई अंतिम और सर्वोच्च पुस्तक मानते हैं। आज हम आप लोगों को अल्लाह की भेजी गई इस सर्वोच्च पुस्तक से जुड़ी एक 105 साल पुरानी कुरान-ए-पाक के बारे में बताने जा रहे हैं, जो आजकल चर्चाओं का विषय बनी हुई है।

हाल ही में 105 साल पुरानी ये कुरान पंजाब में मिली है। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह पंजाबी में लिखी हुई है। जिसके कारण ये सुर्खियों में काफी ज्यादा छाई हुई है। वहीं ऐसा अनुमान भी लगाया जा रहा है कि यह कुरान-ए-पाक शायद 1911 के आस-पास लिखी गई थी।

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हमारे देश भारत का इतिहास मिली जुली संस्कृतियों का संगम रहा है। आज बेशक राजनीतिक पार्टियां धर्म के नाम पर अपनी सियासी रोटियां सेंकने में लगी हों, लेकिन पंजाबी में लिखी पाई गई ये कुरान-ए-पाक इस बात का सबूत है कि पहले कभी इस तरह से धर्म के नाम पर कुछ नहीं होता था।

इस कुरान के बारे में जानकारी देते हुए सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब के रिटायर्ड प्रो. सुभाष परिहार ने बताया कि- “105 सालों में इस पवित्र किताब ने काफी लंबा सफर तय किया है। पहले यह एक सिख के हाथों में रही, फिर मुस्लिम और आखिर में एक हिंदू ने इसकी हिफाजत की।”

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प्रो. सुभाष परिहार के अनुसार “संत वैद्य गुरदित सिंह अल्मोहारी ने इस कुरान का अरबी से गुरुमुखी में अनुवाद किया था, जबकि इसकी छपाई भगत बुधमल अदातली और वैद्य भगत गुरुदित्ता ने एक अन्य सिख भगत मेला सिंह के साथ मिल कर कराई थी। बता दें कि इस क़ुरान की करीब 1000 प्रतियां अमृतसर की बुध सिंह गुरमत प्रेस में छपवाई गई थी।” उन्होंने बताया कि संत अल्मोहारी ने इस पवित्र पुस्तक की छपाई के लिए हिन्दू की मदद इसलिए की जिससे हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, चारों धर्मों में एकता बनी रहे। इससे बेहतर सभी धर्मों के संगम की मिसाल उन्हें नहीं लगता था कि कोई मिल सकती है।

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