हिट एंड रन मामले में सलमान खान की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। अभी कुछ दिन पहले मुंबई हाईकोर्ट ने सलमान को इस मामले से बरी कर दिया था, पर अब महाराष्ट्र सरकार बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने जा रही है। गौरतलब है कि बीते 10 दिसंबर को इस मामले की सुनवाई करते हुए बाम्बे हाईकोर्ट ने सलमान खान को बरी कर दिया था। जस्टिस एआर जोशी ने अभियोजन पक्ष की ओर से अदालत में पेश किए गए गवाहों के बयानों में मौजूद त्रुटियों का उल्लेख कर सलमान खान को निर्दोष करार दिया था। बाम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि पुलिस की ओर से सलमान को उपलब्ध कराए गए अंगरक्षक रवींद्र पाटिल की गवाही मान्य नहीं है। जिसके चलते पुलिस की ओर से सलमान पर लगाए गए दोनों आरोप शराब पीकर गाड़ी चलाना और दुर्घटना के वक्त ड्राइविंग सीट पर होना नकार दिए गए।
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अब महाराष्ट्र सरकार सलमान खान के खिलाफ मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाएगी। गौरतलब है कि इसी साल मई महीने में मुंबई की एक निचली अदालत ने 12 साल तक मामले की सुनवाई करने के बाद सलमान को दोषी करार देते हुए पांच साल की कैद की सजा सुनाई थी। मुंबई के बांद्रा इलाके में साल 2002 में 27-28 सितंबर की रात को अमेरिकन लॉन्ड्री के सामने सलमान खान की लैंडक्रूजर गाड़ी फुटपाथ पर चढ़ गई थी। इस हादसे में बेकरी में काम करने वाले एक मजूदर की मौत हो गई थी, जबकि चार घायल हो गए थे। इसके बाद लापरवाही से गाड़ी चलाने के आरोप में अगले दिन सलमान को गिरफ्तार कर लिया गया था।
क्या मुद्दे उठायेगी महाराष्ट्र सरकार-
सरकारी पक्ष अभी भी अपने पुराने गवाहों, दलीलों के पुनर्निरीक्षण के लिए अपील करेगी। सरकार का आरोप है कि सलमान जानते थे नशे में गाड़ी चलाना खतरनाक है, फिर भी गाड़ी चलाते रहे। इस दौरान सिपाही रवींद्र पाटिल ने उन्हें गाड़ी तेज चलाने पर चेतावनी दी थी। यहां तक कि वो रास्ते से वाकिफ थे और यह जानते थे कि फुटपाथ पर लोग हैं, लेकिन बावजूद इसके सलमान गाड़ी चलाते रहे। दुर्घटना के बाद वो मदद की बजाय वहां से भाग खड़े हुए। चश्मदीदों ने सलमान को ड्राइवर सीट से उतरते देखा। अभी मुंबई हाई कोर्ट द्वारा सलमान को बरी करने पर लोगों ने बहुत से सवाल उठाये थे और सबसे बड़ा रहस्य यह था कि जब सलमान गाड़ी नहीं चला रहे थे तब आखिर कौन चला रहा था ? आखिर दोषी कौन था, सजा किसको मिलनी चाहिए ?
फैसला आने के बाद सोशल मीडिया पर भी इस प्रकार के सवालों की भरमार थी। महाराष्ट्र सरकार ने पुराने गवाहों, दलीलों की पुनर्निरीक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का निर्णय लिया है।