विषकन्याओं के बारे में कई प्रकार के किस्से कहानियां हैं पर इनसे जुड़ी जो सच्चाई हैं जिसको बहुत कम लोग जानते हैं। हाल ही में खुलासा हुआ हैं कि बाबा राम रहीम भी अपने डेरे में विषकन्याओं को रखता था और ये विषकन्या अन्य लड़कियों को बहला-फुसला कर बाबा के पास लेकर जाती थी।
इस बात के उजागर होने के बाद लोगों की आम राय यही बन गई हैं कि विषकन्या साधारण लड़की ही होती हैं जो अन्य महिलाओं तथा लड़कियों को बहला-फुसलाने का कार्य करती हैं पर सच्चाई इससे बिल्कुल उलट हैं।
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विषकन्याओं का नाम प्राचीन भारतीय इतिहास में आज भी मिलता हैं। आपको बता दें कि ‘मुद्राराक्षस’ ‘कल्किपुराण’ तथा ‘कथासरितसागर’ जैसे ग्रंथों में विषकन्या का जिक्र मिलता हैं। इन विषकन्याओं का उपयोग अलग-अलग कार्यों में अलग अलग वजह से होता था। विषकन्या का उपयोग हमेशा किसी न किसी मकसद की पूर्ती हेतु होता था या फिर कभी किसी मज़बूरी के चलते, पर यह सत्य भी हैं कि इनका उपयोग हमेशा हानि पहुंचाने के लिए ही होता आया हैं। महाग्रंथ ‘मुद्राराक्षस’ राजा चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में रचा गया। इसमें वर्णन आता हैं कि राजा की आज्ञा पर नगर वधुएं ही लड़कियों को विषकन्या बनाती थी।
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“कौटिल्य के अर्थशास्त्र” नामक ग्रंथ में भी ऐसा ही एक वर्णन मिलता हैं जिसमें चन्द्रगुप्त मौर्य को उनके दुश्मन “अमात्य राक्षस” छल से एक विषकन्या को उपहार स्वरुप चन्द्रगुप्त मौर्य को दिया था। मगर चाणक्य की सूझ- बूझ के कारण चन्द्रगुप्त की जान बच गई। आप यह सोच रहें होंगे की कोई भी लड़की आखिर विषकन्या किस प्रकार से बनती हैं
आपको बता दें कि उस प्राचीनकाल में जिस लड़की को विषकन्या बनाना होता था उसको बचपन से ही नगर वधु थोड़ी थोड़ी मात्रा में जहर देना शुरू करती थी। जवान होने तक ये लड़कियां इतनी ज्यादा जहरीली बन जाती थी कि इनके नाखून तथा दांतों में जहर भर जाता था। इन लड़कियों को नृत्य तथा जासूसी में प्रवीण बनाया जाता था। इनका ख़ास कार्य जासूसी करना होता था और मौका मिलते ही ये दुश्मन को मार डालना होता था।
कल्किपुराण में भी इन विषकन्याओं का जिक्र मिलता हैं। कल्किपुराण में विषकन्याओं को “कांधली” कहा गया हैं। इस प्रकार से देखा जायें तो विषकन्याओं का इतिहास भारत के प्राचीनकाल में रहा हैं और इनका उपयोग राजा अन्य राज्यों में जासूसी के लिए करते थे।