आपने ऐसे कई लोगों के नाम सुने होंगे जो भारत के लिए शहीद हो गए, पर क्या आप ऐसे किसी शहीद को जानते हैं जो मर कर भी आज जीवित है? यदि नहीं, तो आज हम आपको भारत के एक ऐसे वीर शहीद से यहां रूबरू करा रहें हैं, जो आज भी देश की सरहद की रक्षा कर रहा है। आपको बता दें कि इस अमर शहीद का नाम “शहीद जसवंत सिंह रावत” है। 1962 में भारत-चीन युद्ध में जसवंत सिंह बार्डर पर अकेले ही 72 घंटे तक लड़े थे और लड़ते हुए शहीद हो गए थे, पर लोगों का मानना है कि वे आज भी देश की सरहद की रक्षा कर रहें हैं।
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शहीद जसवंत सिंह रावत का जन्म 19 अगस्त 1941 में उत्तराखंड के पौड़ी-गढ़वाल में हुआ था। 19 अगस्त 1960 को जसवंत सिंह ने भारतीय सेना ज्वाइन किया और रायफल मैन के पद पर तैनात हुए। 17 नवंबर 1962 के दिन चीन ने भारत के अरुणाचल को कब्जाने के लिए हमला कर दिया था। इस समय चीन की सेना लगातार हावी होती जा रही थी, इसलिए ही गढ़वाल की यूनिट को वापस बुला लिया गया था, पर इस यूनिट के तीन लोग जसवंत सिंह, लांस नायक त्रिलोकी सिंह नेगी और गोपाल गुसाई वापस नहीं गए थे। इन तीनों ने यहीं रह कर चीनी सेना से लड़ना पसंद किया। इस लड़ाई में इन तीनों ने इस युद्ध का रूख बदल दिया और चीन अरुणाचल पर कब्जा नहीं कर पाया।
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इस युद्ध में तीनों लोग शहीद हो गए थे। स्थानीय लोगों का मानना है कि आज भी जसवंत सिंह की आत्मा देश की सरहद की रक्षा कर रही है। नूरानांग नामक जिस स्थान पर जसवंत सिंह शहीद हुए थे, वहां उनका स्मारक बनाया गया है। आज भी वहां के सेना कार्यालय में उनका कमरा बना हुआ है। प्रतिदिन उनके कपड़ों पर प्रेस की जाती है तथा जूतों पर पॉलिश की जाती है, पर अगले ही दिन जूतों पर धुल जमी पाई जाती तथा कपड़ों पर सिलवटें। यही कारण है कि लोगों का मानना है कि जसवंत सिंह की आत्मा आज भी भारत की सीमा की रक्षा कर रही है।