अपने देश में वैसे तो बहुत से मंदिर हैं पर आज हम जिस मंदिर के बारे में आपको बता रहें हैं वह इसलिए भी लोगों में फेमस है क्योंकि वहां पर महाभारत काल का एक योध्दा आज भी सबसे पहले पूजन करने के लिए आता है। जी हां, वैसे तो महाभारत को हजारों वर्ष बीत चुके हैं पर आज भी कुछ चीजें ऐसी हैं जो हमें उस समय के लोगों का आभास करा देती हैं।
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आज हम जिस मंदिर के बारे में आपको बता रहें हैं उस मंदिर का नाम “कालीवाहन मंदिर” है और यह मंदिर उत्तर प्रदेश के इटावा मुख्यालय से महज 5 किमी की दूरी पर यमुना किनारे बना है। यह मंदिर अपने में शक्तिपीठ माना जाता है। इस मंदिर में लक्ष्मी, काली तथा सरस्वती की प्रतिमाएं मौजूद हैं तथा प्रतिमाओं का यह शिल्प 10वीं से 12वीं शताब्दी के मध्य का माना जाता है। इस मंदिर का नाम “काली भवन” है। इस मंदिर के पुजारी महंत राधेश्याम दुबे पिछले 35 वर्ष से इस मंदिर की सेवा कर रहें हैं, ये बताते हैं कि “मंदिर को रात में अच्छे से धोकर बंद किया जाता है, पर जब सुबह खोला जाता है तो प्रतिमाओं पर ताजे फूल चढ़े मिलते हैं, इससे साबित होता है कि मंदिर में सबसे पहले आकर कोई पूजन कर जाता है।”, यहां के स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इस मंदिर में रोज सबसे पहले महाभारतकालीन अश्वत्थामा आकर पूजन करते हैं। आपको हम बता दें कि यह मंदिर सिनेमाई निर्देशकों का भी पसंदीदा स्थान रहा है, यहां पर डाकुओं से संबंधित कई फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। निर्देशक कृष्णा मिश्रा की फिल्म “बीहड़” का कुछ हिस्सा इस मंदिर परिसर में ही फिल्माया गया था, यह फिल्म चंबल घाटी में सक्रीय रहें डाकुओं पर बनी थी।