दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर, जिसकी भव्यता को देख आप भी हो जायेगें हैरान!

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भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता व वास्तुकला की सुंदरता को बखूबी दर्शाता एक अनोखा मंदिर दिल्ली के प्रमुख आकर्षणों में से एक है। जिसे स्वामी नारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, देश की राजधानी दिल्ली में बना अक्षरधाम का मंदिर संस्कृति और शिल्पकला का सुंदर नमूना है। जिसे दिल्ली के अहम दर्शनीय स्थलों में शुमार किया गया है।

अक्षरधाम मंदिर बाकी इमारतों की तरह भले ही प्राचीन नहीं है, लेकिन उसकी अद्भुत सुदंरता जिस अंदाज़ में फैली है, उसने दिल्ली के अहम दर्शनीय स्थलों में अपना नाम शुमार किया गया है।

अक्षरधाम

अक्षरधाम मंदिर ज्योतिर्धर भगवान स्वामिनारायण की पुण्य स्मृति में बनवाया गया है। स्वामिनारायण संप्रदाय को मानने वाले लोग उन्हें भगवान मानते हैं। गुजरात में इसका प्रचार प्रसार अच्छा-खासा देखने को मिल सकता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इतने विशाल मंदिर के भगवान स्वामिनारायण कौन थे?

घनश्याम पाण्डे या स्वामिनारायण या सहजानन्द स्वामी (2 अप्रैल 1781 – 1 जून 1830), हिंदू धर्म के स्वामीनारायण संप्रदाय के संस्थापक थे।

2 अप्रैल, 1781 को भगवान श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या के पास छपिया नामक गांव में इनका जन्म रामनवमी के दिन हुआ था। इनके पिता का नाम हरिप्रसाद और मां का नाम भक्तिदेवी था। बचपन में  स्वामिनारायण का नाम भी घनश्याम रखा गया था।

अक्षरधाम

बालक के हाथ में पद्म और पैर से बज्र, ऊर्ध्वरेखा तथा कमल का चिन्ह देखकर ज्योतिषियों ने पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी कि यह बालक लाखों लोगों के जीवन को सही दिशा देगा।

पांच वर्ष की आयु में बालक को अक्षरज्ञान दिया गया। आठ वर्ष का होने पर उनका जनेऊ संस्कार हो गया। छोटी अवस्था में ही उन्होनें अनेक शास्त्रों का अध्ययन कर लिया था।

अक्षरधाम

11 वर्ष की आयु में माता पिता का देहांत हो गया। कुछ समय बाद अपने भाई से किसी बात पर विवाद होने पर उन्होंने घर छोड़ दिया और अगले सात साल तक पूरे देश की परिक्रमा की। इसके बाद से वो नीलकंठवर्णी के नाम से जाने जाने लगे।

इस दौरान उन्होंने गोपालयोगी से अष्टांग योग सीखा। वे उत्तर में हिमालय, दक्षिण में कांची, श्रीरंगपुर, रामेश्वरम् आदि तक गये। कई जगहों की यात्रायें करने के बाद वो पंढरपुर व नासिक होते हुए गुजरात आ गए।

अक्षरधाम

चारों ओर के परिभ्रमण के दौरान उनकी भेट स्वामी मुक्तानंद से हुई। जो स्वामी रामानंद के शिष्य थे। नीलकंठवर्णी स्वामी रामानंद के दर्शन को उत्सुक थे। उधर रामांनद जी भी प्रायः भक्तों से कहते थे कि असली नट तो अब आएगा, मैं तो उसके आगमन से पूर्व डुगडुगी बजा रहा हूं। भेंट के बाद रामांनद जी ने उन्हें स्वामी मुक्तानंद के साथ ही रहने को कहा। नीलकंठवर्णी ने उनका आदेश शिरोधार्य किया।

कुछ समय बाद स्वामी रामानंद ने नीलकंठवर्णी को पीपलाणा गांव में दीक्षा देकर उनका नाम ‘सहजानंद’ रख दिया। और उन्होंने सहजानंद को अपने सम्प्रदाय का आचार्य पद भी दे दिया। इसके कुछ समय बाद स्वामी रामानंद जी का शरीरांत हो गया।

‘सहजानंद’ की याद में ही उनके नाम के मंदिर उनके अनुयायियों द्वारा बनाये जाने लगें। इसी तरह से दिल्ली के करीब 100 एकड़ जमीन पर फैले इस मंदिर को उनके अनुयायियों नें बनावाया था जिसके पट दर्शनार्थियों के लिए 6 नवंबर, 2005 में खोले गए थे।

इसमें 200 पत्थर की मूर्तियां शामिल हैं। इस मंदिर में 234 नक्काशीदार स्तंभ, 9 अलंकृत गुंबद, गजेंद्र पीठ और भारत के दिव्य महापुरुषों की 2000 मूर्तियां शामिल हैं।

अक्षरधाम मंदिर नारायण सरोवर से घिरा हुआ है, जो कि एक झील है और यह झील भारत में 151 झीलों से पानी लेती है। झील के पास 108 चेहरे गाय (गोमुख) के हैं, जो 108 हिन्दू देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। स्मारक के अंदर हिंदू तपस्वीयों, साधुओं और आचार्यों की 20 हजार प्रतिमाएं स्थित हैं।

अक्षरधाम

इसके केंद्रीय गुंबद के नीचे 11 फुट ऊंची स्वामी नारायण की प्रतिमा है, जिसके चारों ओर इस संप्रदाय के अन्य गुरूओं की प्रतिमाएं स्थित हैं। प्रत्येक मूर्ति हिन्दू परंपरा के अनुसार “पांच धातुओं” से बनाई गई है।

17 दिसंबर, 2007 के दिन गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स की ओर से इस मंदिर को दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर घोषित किया गया था।

अक्षरधाम

Pratibha Tripathi
Pratibha Tripathihttp://wahgazab.com
कलम में जितनी शक्ति होती है वो किसी और में नही।और मै इसी शक्ति के बल से लोगों तक हर खबर पहुचाने का एक साधन हूं।

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