समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर कोहराम क्यों ?

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समलैंगिकों की शादी, एक ऐसा मुद्दा है जिस पर कई देशों में काफी जद्दोजहद हुई। जिसके बाद अमेरिका और कैलिफोर्निया और यहां तक कि आयरलैंड जैसे पारंपरिक देश सहित 30 से भी ज्यादा देशों ने समलैंगिक रिश्तों का अपराध मानने से इंकार कर दिया। इन देशों में समलैंगिक जोड़ों को शादी करने की इजाजत मिल गई, लेकिन देखने वाली बात यह है कि अभी तक हमारे देश भारत में ऐसे रिश्तों को अपनाने के लिए हरी झंडी नहीं दी गई है।

हमारा देश भारत वैसे तो दिन-प्रतिदिन लगातार तरक्की कर रहा है। दुनिया को टक्कर देने के लिए नई सोच और नई तकनीकों को अपना रहा है, लेकिन ऐसे में देखने वाली बात यह है कि जब इन समलैंगिक रिश्तों को अमेरिका जैसा देश मान्यता दे सकता है तो भारत देश में यह लीगल क्यों नहीं है। आखिर भारत क्यों ऐसे रिश्तों को मान्यता देने के पक्ष में नहीं है।

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अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर हम ऐसा कैसे बोल रहे हैं तो आपको बता दें कि हमने नहीं बल्कि मद्रास हाईकोर्ट ने केन्द्र सरकार से यह कहा है। मद्रास हाईकोर्ट ने समलैंगिक रिश्तों को लेकर केन्द्र सरकार से यह सवाल किया है कि भारत में समलैंगिक रिश्ते लीगल क्यों नहीं हो सकते। जज एन. किरूबाकरन ने समलैंगिक शादियों के विवाद से जुड़े दो मामलों, जिनमें से एक समलैंगिक पुरुष तो दूसरा समलैंगिक महिला से जुड़ा था उस पर आदेश देते हुए कहा कि ‘क्या सरकार को अब एलजीबीटी समुदाय को अलग कानूनी दर्जे और एक समूह के तौर पर उनके अधिकारों को मान्यता नहीं देनी चाहिए।’

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जज एन. किरूबाकरन का कहना है कि एलजीबीटी समुदाय के लोग विपरीत लिंग की ओर अपना आकर्षण नहीं दिखा सकते, जो कि किसी भी शादी को कामयाब करने के लिए जरूरी होता है। ऐसे में सरकार वैवाहिक कानून में बदलाव कर समलैंगिक के वैध कारणों को जानते हुए इसे लीगल क्यों नहीं करती।

बहरहाल सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को 5 सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दिया है, क्योंकि इस मसले में संविधान से संबंधित मुद्दे शामिल हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि यह पांच सदस्यीय पीठ आगे भविष्य में गठित की जाएगी।

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आपको बता दें कि मंगलवार को इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट ने भी एक याचिका की सुनवाई की। इस याचिका को समलैंगिकों के अधिकारों के लिए काम करने वाले वॉलिंटियर्स ने दायर किया है। जिसमें आईपीसी के सेक्शन 377 पर दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को परिवर्तित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार की अपील की गई है।

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