विष्णु गणेश पिंगले – जब क्रांतिकारियों के पास पिस्तौल भी नहीं हुआ करती थी, तब इन्होंने बना डाले थे 300 बम

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इस वर्ष 15 अगस्त को हमें आजाद हुए 70 वर्ष हो जाएंगे। इस आजादी के लिए बहुत लोगों ने अपने भविष्य को एक ओर रख कर, क्रांतिकारी के जीवन को अपनाया, ताकी हम आजाद देश में रह सकें। शिक्षा व्यवस्था पहले भी थी और बहुत से लोग ऊंची शिक्षा के लिए विदेश तक में पढ़ें थे, पर जब वे भारत लौटे तो उनका सपना अपने देश को ही आजाद कराने का था और अपने इस सपने लिए उन्होंने अपने सुनहरे भविष्य को एक ओर रख कर, वह राह चुनी जिसकी वजह से आज हम खुले आकाश के नीचे आजाद देश में सांस ले रहें हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही क्रांतिकारी के बारे में बता रहें हैं जिसने उच्च शिक्षा के बाद भारत को आजाद कराने का स्वप्न देखा था। आइए जानते हैं इस महान क्रांतिकारी के जीवन को।

विष्णु गणेश पिंगलेImage Source: 

भारत के इस पहले इंजीनियर क्रांतिकारी का नाम “विष्णु गणेश पिंगले” था। 2 जनवरी 1888 में विष्णु गणेश पुणे के तलेगांव में पैदा हुए थे। उच्च शिक्षा के लिए विष्णु 1911 में अमेरिका पहुंचे और वहां की सिटेल यूनिवर्सिटी के इंजीनियरिंग विभाग में एडमिशन लिया। इस स्थान पर विष्णु गणेश को लाला हरदयाल जैसे कई लोगों से मिलने का मौका मिला और देश के प्रति आस्था ने मन विस्तार पाया। यहां विष्णु गणेश पिंगले के कई अन्य साथी बन गए थे, जो देश को आजाद कराने की इच्छा रखते थे। विष्णु गणेश पिंगले ने देश के अंदर गदर पैदा कर देश को आजाद कराने का प्लान बनाया और इसी के लिए वे अपने कई साथियों सहित भारत आए।

विष्णु गणेश पिंगलेImage Source: 

भारत में विष्णु गणेश कोलकाता तथा पंजाब के कई क्रान्तिकारी विचारधारा रखने वाले लोगों से मिले। अब समय वह था जब बंगाल, पंजाब तथा उत्तर प्रदेश क्रांति के लिए तैयार था। विष्णु गणेश का यह प्लान कामयाब जरूर होता, पर नादिर खान नामक एक व्यक्ति की गद्दारी के कारण विष्णु गणेश को गिरफ्तार कर लिया। उस समय विष्णु गणेश के पास बमों का जखीरा था। कहते हैं कि उस समय में क्रान्तिकारी एक पिस्तौल तक के लिए तरसते थे, पर उस समय विष्णु गणेश पिंगले ने पूरे 300 बमों का इंतजाम कर दिया था। विष्णु को गिरफ्तार करने के बाद में अंग्रेज सरकार ने उन पर मुकदमा चलाया और 17 नवंबर 1915 को लाहौर की सेंट्रल जेल में उनको फांसी दे दी गई। इस प्रकार से आजादी का यह मसीहा हमेशा के लिए अमर हो गया।

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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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