यह बात सच है कि हम चाहें तो अपनी मेहनत के बल पर अपने हाथ की लकीरों को भी बदल सकते हैं। अगर हमको अपना भाग्य लिखना नहीं आया तो परिस्थितियां आपका भाग्य लिख जाती हैं| आज हम बता रहे हैं आपको एक ऐसे शख़्स के बारे में, जो आज के समय में फ़र्श से अर्श पर जा पहुंचा है।
विकी रॉय-यह वो बच्चा है जो11 साल की उम्र में एक अच्छी ज़िन्दगी की तलाश में घर से भागा था। तब उसे नहीं मालूम था कि ज़िन्दगी की सच्चाई के बारे में कि जिंदा रहने के लिये कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन इसने कई परेशानियां झेली और आज वो एक सफ़ल फ़ोटोग्राफ़र बन गया।
विकी ने बताई अपनी कहानी जिसे पढ़ने के बाद आपको भी हो जायेगा अपनी क़िस्मत पर यकीन..
विकी बताते हैं कि जब ‘मैं 3 साल का था जब मेरे माता-पिता मुझे मेरे दादाजी के पास छोड़ कर चले थे, जहां पर मुझे दादाजी का प्यार कम और मार ज्यादा मिलती थी। वो मुझे अक़्सर पीटा करते थे। इसी तरह से दिन बीतते गए। फिर जब मैं 11 साल का हुआ तब मैंने दादाजी के पास रखे कुछ पैसे चुराए और दिल्ली की ट्रेन पकड़ ली। यहां आने के बाद तो मैं एक-एक दाने को मोहताज हो गया। अपना पेट भरने के लिये कचरा उठाना, ट्रेन में पानी की बोतल बेचना, होटल के बर्तनों को धोना, और खुली सड़क पर सोना ये सभी मुझे करना पड़ता था। होटल के बरतन धोने के बाद वहां मुझसे बहुत काम करवाया जाता और लोगों का छोड़ा हुआ खाने दिया जाता।
इतनी गंदगी में रहने के कारण मुझे कई बार Infection हो जाता था। एक बार जब अपने इलाज के लिए डॉक्टर के पास गया तो उन्होनें मेरी हालत देखकर मुझे बेसहारा बच्चों की देखभाल करने वाले ‘सलाम बालक’ नामक NGO के बारे में बताया और वहाँ जाने की सलाह दी। वहाँ जाने के बाद मेरी ज़िन्दगी खुशहाल बन गई। मुझे तीन वक़्त का खाना, पहनने को साफ़ कपड़े और सिर पर छत मिली। उन्होंने मेरा एक स्कूल में दाखिला भी करवाया। एक बार एक अंग्रेज़ फ़ोटोग्राफ़र हमसे मिलने आया। जो सड़क पर रहने वाले लोगों के पर जानकारी इकट्ठा कर रहा था। मैं सड़क पर रहे लोगों की दशा तस्वीरों के ज़रिए दिखाना चाहता था, ठीक उस फ़ोटोग्राफ़र की तरह।
मेरी रूचि भी धीरे-धीरे तस्वीरें लेने की ओर बढ़ती गई। और जब मैं 18 का हुआ तो NGO ने मुझे 499 का कैमरा दिया और एक लोकल फ़ोटोग्राफ़र के पास इंटर्नशिप पर लगवा दिया।
उन्होंने मुझे सड़कों की ज़िन्दगी पर आधारित मेरी पहली Exhibition ‘Street Dreams’ लगाने में मदद की। बस यहीं से मेरी जिंदगी को एक नई राह मिली। लोग मेरी तस्वीरों को पसंद कर ख़रीदने लगे और मुझे दुनिया घूमने का भी मौक़ा मिला। मुझे न्यू यॉर्क, लंदन, दक्षिण अफ़्रिका और सैन फ़्रैंसिस्को जाने का मौका मिला। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मेरी क़िस्मत यूं बदल जाएगी.
आज मेरा नाम Forbes 30 Under 30 में शामिल है। हाल ही मुझे मेरे गांव के एक इंसान नें पहचान लिया और मेरे पास फ़ोन कॉल्स की बाढ़ आने लगी।
मैं ये समझ चुका हूँ कि हम सभी अच्छी क़िस्मत के साथ पैदा नहीं होते और न ही टॉप पर पहुंचने के लिए सभी को बुरे अनुभवों से गुज़रना पड़ता है. मेरे पास कुछ भी नहीं था और आज मैं अपनी सोच से काफ़ी आगे पहुंच चुका हूं. आप इस बात पर यक़ीन रखिए कि उस भयानक तूफ़ान के बाद भी सूरज निकेलगा.’