बाइबिल और कुरआन, तौरात, इंजिल तथा हिन्दू धर्म के मत्स्य पुराण का अध्ययन यह बताता है की हजरत नूह ही महाराज मनु थे। मोटे तौर पर आज इस्लाम, यहूदी और ईसाई धर्म में नूह हो पैग़म्बर माना जाता है। अब से सैकड़ों साल पहले हुई जल प्रलय की घटना को संसार के हर कोने ने इतिहास में देखा गया है और यही कारण है की यह जल प्रलय की घटना लगभग सभी सभ्यताओं में पाई जाती है। सबसे बड़ी बात यह है कि सैकड़ों साल बाद भी इस घटना में कोई रद्दोबदल नहीं हुआ है। महाराज मनु के जीवन की इस घटना को इस्लाम, ईसाई और यहूदी धर्म में “नूह की नौका” नाम से आज भी पढ़ा जाता है। आइये जानते हैं महाराज मनु यानि हजरत नूह के जीवन की इस घटना को जिसने वर्तमान जीवन की नींव रखी थी।
हजरत नूह की नांव –
Image Source:
यह उस समय की घटना है जब हजरत नूह की उम्र 600 साल की थी, उस समय हजरत नूह से ईश्वर ने कहा “तू एक-जोड़ी सभी तरह के प्राणी समेत अपने सारे घराने को लेकर कश्ती पर सवार हो जा, क्योंकि मैं पृथ्वी पर जल प्रलय लाने वाला हूँ।”
बाइबल में ऐसा कहा गया है की उस समय पृथ्वी पर पाप बहुत ज्यादा बढ़ गया था इसलिए ईश्वर ने इस पृथ्वी को जल प्रलय से ख़त्म करने का फैसला ले लिया था परन्तु हजरत नूह उनके सच्चे उपासक और सच्चे इंसान थे इसलिए ईश्वर ने उनको चेता दिया था। ईश्वर के इस खुलासे के बाद हजरत नूह ने लकड़ी की एक बहुत बड़ी नांव बनाई जिसमें उन्होंने हर प्रजाति के जीव और पशु-पक्षियों के जोड़े रख लिए थे। ठीक 7 दिन बाद में आसमान से बारिश शुरू हो गई और लगातार तेज होती रही। कुछ ही दिन में लगातार होती इस बारिश से पृथ्वी के सारे पहाड़ डूब गए और पृथ्वी पर चारो और जल ही जल हो गया। इस जल प्रलय से साड़ी पृथ्वी के लोग समाप्त हो गए थे, पृथ्वी जल से के पहाड़ 150 दिनों तक दुबे रहें और हजरत नूह उस सारे समय पानी के ऊपर अपनी कश्ती पर परिवार और अन्य जीवों के साथ में रहें। काफी समय बाद बारिश बंद हुई और जलस्तर धीरे धीरे कम हुआ इसके बाद में हजरत नूह की नाव पर सवार लोगों और अन्य जीवों की वजह से यह पृथ्वी फिर से आबाद हुई।
महाराज मनु का जहाज –
Image Source:
राजर्षि सत्यव्रत को वैवस्वत मनु या मनु महाराज भी कहा जाता है, महाराज मनु द्रविड़ देश के राजा थे। मत्स्य पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने महाराज मनु के सामने मतस्य के रूप में प्रगट होकर कहा था कि “आज से सातवें दिन भूमि जल प्रलय के समुद्र में डूब जाएगी। तब तक एक नौका बनवा लो। समस्त प्राणियों के सूक्ष्म शरीर तथा सब प्रकार के बीज लेकर सप्तर्षियों के साथ उस नौका पर चढ़ जाना। प्रचंड आंधी के कारण जब नाव डगमगाने लगेगी तब मैं मत्स्य रूप में बचाऊंगा। तुम लोग नाव को मेरे सींग से बांध देना। तब प्रलय के अंत तक मैं तुम्हारी नाव खींचता रहूंगा।”
जब इतना सब कुछ सफलता पूर्वक हो गया तो मतस्य रूप में भगवान विष्णु ने महाराज मनु की नांव को हिमालय पर्वत की एक चोटी से बांध दिया था, यह पर्वत चोटी आज भी ‘नौकाबंध’ के नाम से जानी जाती है। प्रलय समाप्त होने के बाद भगवान ने वेद का ज्ञान वापस कर दिया और महाराज मनु ज्ञान-विज्ञान से युक्त होकर वैवस्वत मनु कहलाए। इस नांव में जो लोग और पशु-पक्षी तथा पेड़ों के बीज आदि बचे थे उनसे ही वर्तमान संसार आज कायम है।
यहां यह बात ध्यान रखनी चाहिए की बाइबल, कुरआन और इंजील से भी बहुत पहले “मतस्य पुराण” लिखा गया था जिसमें इस घटना का विस्तृत वर्णन मिलता है इसलिए इस घटना को किसी भी घर्म विशेष से जोड़ कर न देखते हुए वर्तमान मानव जाती के विकास के सच्चे इतिहास के रूप में देखना चाहिए।