सात जन्म मोहे हिजड़ा ही कीजो,समाज से लड़ती किन्नर की जिंदगी..

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आज हमारा देश जिस गति से आगे बढ़ रहा है, उसी गति से देश के लोग भी नई-नई तकनीकों से जुड़कर आगे की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन बदल नहीं रहे। नहीं बदल रही लोगों की मानसिकता और नहीं बदल रही समाज में रहने वाले किन्नरों की जिदंगी। ये लोग आज भी उसी पुरानी धारणाओं के साथ जी रहे हैं। जो कई वर्ष पूर्व थी। जिसमें किन्नरों के ओहदे को पूरी तरह से दबा दिया गया था। जिससे किन्नरों के बढ़ते कदम को समाज उसे पीछे की ओर ढकेल देता है। समाज की इसी उपेक्षा का शिकार बनी किरण सखी नाम की किन्नर जिसने बीते रात जहर खाकर अपनी इहलीला समाप्त करने की कोशिश की और फेसबुक पर अपने स्टेट्स को पोस्ट करते हुये लिखा कि मैं दुनिया से दूर जा रही हूं, पर भगवान अगले सात जन्मों तक मुझे हिजड़ा ही बनाये रखियो।

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फेसबुक पर किरण के स्टेटस को पढ़ उसके दोस्तों ने तुंरत ही उसे अस्पताल पंहुचाया जहां पर अब वो खतरे से बाहर बताई जा रही है।

हिन्दी, अंग्रेजी के साथ कई अन्य भाषाओं का ज्ञान रखने वाली किरण का असली नाम तरविंदर सिंह है। पंजाब विश्वविद्यालय से कंप्यूटर सांइस से ग्रेजुएट करने के बाद उसने आइटी की कपंनी में काम करना शुरू कर दिया था, अपने ज्ञान कौशल के दम पर किरण ने 6 साल तक उस कपंनी में एक हेड बनकर काम भी किया। लेकिन समाज को उसकी ये तरक्की रास नही आयी और उसको समय समय पर उसकी इस शारीरिक कमजोरी का ताना देकर, कमजोरी का अभास कराती रही। समाज की इसी उपेक्षा का शिकार बनी किन्नर किरण फिर आईटी की जॉब छोड़ सरकारी नौकरी का तलाश में निकल पड़ी। लेकिन वहां भी उसकी कमजोरी उसकी दीवार बन कर खड़ी रही। समाज की उपेक्षा और सरकार की नियमबद्धता से तंग आकर आखिर उसने भीख मांगना ही उचित समझा और निकल पड़ी हिजड़ा समुदाय के साथ सड़को पर भीख मांगने। ऐसे में सोचने वाली बात ये है की क्या इसी कमजोरी के चलते किरण की योग्यता भी अधुरी थी जिसे समाज और सरकार दोनो नकार रहे थे, पर ये कमजोरी तो ईश्वरीय देन है। इसमे उसका क्या कुसूर बनता है। आखिर क्यो उन्हें मरने की स्थति तक पंहुचाने के लिये मजबूर किया जाता है। आखिर क्यों और कब तक समाज इनके रास्ते का ऐसे ही रौड़ा बनता रहेगा। आज समाज के सामने यह एक बड़ा प्रश्न है?

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