देखा जाए तो अपने समाज में महिलाओं और पुरुषों के लिए प्रत्येक काम के लिए अलग-अलग मानक तय किये गए हैं। किसको क्या पहनना है, क्या कहना है, कैसे बोलना है आदि सब कुछ हमें बचपन से अच्छी तरह से सिखा दिया जाता है लेकिन सवाल ये उठता कि आखिर किन लोगों ने बनाये हैं ये कानून जो महिला या पुरुष के मध्य दीवार बनाते है और क्या हैं इनकी सीमाएं। इस प्रकार की सीमाओं को ख़त्म कर खुद अपनी मर्जी और पसंद से जीने वाले व्यक्ति का नाम है हिमांशू। दिल्ली में हिमांशू को “साड़ी मैन” के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। जानकारी के लिए बता दें कि वह पिछले 12 सालों से लगातार साड़ी पहन रहे हैं।
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साड़ी पहनने के उनके इस शौक के बारे में कोई उनसे पूछता है तो वे कहते हैं कि “मैंने इसे इसलिए पहना ताकि लोग ये समझें कि ये हमारी संस्कृति का हिस्सा है और इसे पुरुष भी पहन सकते हैं। इसे पहनने के पीछे भारतीय परिधान की खूबसूरती को दुनिया के सामने लाना भी एक वजह थी”। हिमांशू साड़ी फेस्टिवल का भी आयोजन करते हैं और वे इस आयोजन को अपने आर्ट क्यूरेशन ऑर्गनाइज़ेशन रेड अर्थ (Red Earth) के जरिये 2014 से कर रहे हैं। इस आयोजन में वे कंटेम्प्ररी और ट्रेडिशनल दोनों तरह की साड़ियों को प्रदर्शित करते हैं।
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हिमांशू का कहना है कि “मैं इसे इसलिए पहनता हूं क्योंकि मुझे इसे पहनकर बहुत अच्छा लगता है। मैं लोगों की इस मानसिकता को बदलना चाहता हूं कि साड़ी सिर्फ महिलाओं के लिए है”।