पवित्र कुंड- जहां पर स्नान करने से मिलती है संतानहीनता से मुक्ति

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आज हम आपको एक ऐसे कुंड के बारे में जानकारी देने जा रहें हैं जिसका वर्णन पुराणों में है तथा जिसके बारे में अलग-अलग मान्यताएं भी कई ग्रंथो में है। कहा जाता है यह कुंड बहुत पवित्र है और यहां पर स्नान करने के बहुत से लाभ मानव जाति को मिलते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि इस कुंड में स्नान करने के बाद में संतानहीन व्यक्ति भी संतानयुक्त हो जाता है। लोगों का यह भी मानना है कि इस कुंड में स्नान करने से सारे पाप व बीमारियां भी दूर हो जाती है। आइये जानते हैं इस कुंड के बारे में।

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यह कुंड उत्तराखंड प्रदेश में “रुद्रप्रयाग” जिले में स्थित है, इस स्थान पर त्रियुगीनारायण मंदिर है जहां पर यह कुंड “सरस्वती कुंड” के नाम से प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र को हिमालय का मंदाकनी क्षेत्र भी कहा गया है। इस क्षेत्र की कई पौराणिक कहानियां और मान्यताएं प्रचलित हैं। आइये आपको यहां की कुछ मान्यताओं के बारे में भी बताते चलें। एक मान्यता यह है कि इस क्षेत्र के त्रियुगीनारायण स्थान पर ही भगवान शिव ने माता पार्वती से शिवरात्रि के दिन विवाह किया था।

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यहां पर अग्नि की जोत त्रेतायुग से लगातार जल रहा रही है जिसके बारे में यह मान्यता है कि इस अग्नि के ही सामने भगवान शिव और माता पार्वती ने विवाह किया था। यहां पर 3 कुंड भी बने हुए हैं जिनके नाम ब्रह्मा कुंड, विष्णु कुंड या रूद्र कुंड हैं, इन कुंडो के बारे में यह मान्यता है की शिव-पार्वती के विवाह में आये हुए सभी देवताओं ने इन कुंडो में स्नान किया था। इन तीनों कुंडो में जल सरस्वती कुंड से आता है और इस सरस्वती कुंड के बारे में यह मान्यता है कि इसका निर्माण भगवान विष्णु की नाक से हुआ था, इसलिए ऐसा माना जाता है कि इस सरस्वती कुंड में स्नान करने से संतानहीन व्यक्ति को भी संतान मिल जाती हैं।

कैसे पहुंचे यहां –

सबसे पहले तो यह जान लें इस यह स्थान केदारनाथ धाम से 19 किमी पहले बूढ़ाकेदार और सोनप्रयाग के रास्ते में आता है यहां पर ही त्रियुगीनारायण मंदिर स्थित है, इसलिए केदारनाथ के दर्शन करने वाले लोग भी यहां आ सकते हैं। केदारनाथ के लिए हैलीकॉप्टर की सुविधा भी वर्तमान में है। सबसे पहले तो आपको हरिद्वार और ऋषिकेश को पहुंचना होता है, यहां से आपको कई साधन मिल जाते हैं जो आपको केदारनाथ धाम पंहुचा देते हैं। हवाई यात्रा करके आना चाहते हैं तो आपको देहरादून तक हवाई यात्रा का सफर मिलता है। इसके बाद में यहां से सड़क मार्ग द्वारा करीब 240 किमी दूर पहुंचने के बाद में आप केदारनाथ धाम पहुंचते हैं। ऋषिकेश के केदारनाथ धाम की दूरी 225 किमी है और दिल्ली से यही दूरी 460 किमी है।

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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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