भारत एक ऐसा देश है जिसमें एक, दो नहीं बल्कि तीन ऋतुएं पड़ती हैं। इन तीन ऋतुओं के हिसाब से ही भारत का किसान अलग-अलग फसलों को उगाता है। भारत एक कृषि प्रधान देश है इसलिए इसके अधिकतर क्षेत्रफल पर फसल ही उगाई जाती है। किसान को भारत में अन्नदाता की हैसियत से देखा जाता है। गर्मियां आते ही भारत के किसानों की परेशानी बढ़ जाती है, क्यों कि बहुत से क्षेत्र ऐसे हैं जहां पर बारिश बहुत कम होती है। बरसात को लेकर किसान असमंजस में रहता है कि पता नहीं कब बरसात होगी और हम फसल को लेकर तैयारी करेंगे। ऐसे में मौसम विभाग की सूचना पर ही भरोसा कर वह अपनी फसल उगाने की तैयारी करता है। समय से बरसात नहीं आने के कारण या बरसात के बारे में पता नहीं लगने पर उनकी फसल को लेकर की गई तैयारी धरी की धरी रह जाती है। यही वह वक्त होता है जब किसान को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है। वहीं उत्तर प्रदेश का एक मंदिर बरसात का संकेत दे कर पिछले कई सालों से किसानों का रहनुमा बना हुआ है।
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असल में यह मंदिर सात दिन पहले बता देता है कि बरसात कब आएगी। जिससे किसानों को अपनी फसल की तैयारी करने में मदद मिल जाती है। जानकारी के लिए बता दें कि यह मंदिर उत्तर प्रदेश के कानपुर जनपद में स्थित है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ का मंदिर है। यह मंदिर कानपुर जनपद के भीतरगांव विकासखंड मुख्यालय से तीन किलोमीटर पर बेंहटा गांव में स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर की खासियत यह है कि बरसात से 7 दिन पहले इसकी छत से बारिश की कुछ बूंदे अपने आप ही टपकने लगती हैं। जिससे किसानों को बारिश का अनुमान लग जाता है और वे अपना कृषि संबंधित कार्य समय से पूरा कर लेते हैं। सबसे अनोखी बात यह है कि मंदिर से टपकी बूंदे भी उसी तरह की होती हैं जिस तरह की बारिश होनी होती है।
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हालांकि इस रहस्य को जानने के लिए कई बार प्रयास हो चुके हैं पर तमाम सर्वेक्षणों के बाद भी मंदिर के निर्माण तथा रहस्य का सही समय पुरातत्व वैज्ञानिक पता नहीं लगा सके। बस इतना ही पता लग पाया कि मंदिर का अंतिम जीर्णोद्धार 11वीं सदी में हुआ था। उसके पहले कब और कितने जीर्णोद्धार हुए या इसका निर्माण किसने कराया जैसी जानकारियां आज भी अबूझ पहेली बनी हुई हैं, लेकिन बारिश की जानकारी पहले से लग जाने से किसानों को जरूर सहायता मिलती है।
इस मन्दिर में भगवान जगन्नाथ, बलदाऊ और बहन सुभद्रा की काले चिकने पत्थर की मूर्तियां स्थापित हैं। वहीं सूर्य और पदमनाभम भगवान की भी मूर्तियां हैं। मंदिर की दीवारें 14 फीट मोटी हैं। वर्तमान में मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है। मंदिर से वैसी ही रथ यात्रा निकलती है जैसी पुरी उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर से निकलती है।
मौसमी बारिश के समय मानसून आने के एक सप्ताह पूर्व ही मंदिर के गर्भ ग्रह के छत में लगे मानसूनी पत्थर से उसी घनत्वाकार की बूंदें टपकने लगती हैं, जिस तरह की बरसात होने वाली होती है। जैसे ही बारिश शुरू होती है वैसे ही पत्थर सूख जाता है।
मंदिर के पुजारी दिनेश शुक्ल ने बताया कि कई बार पुरातत्व विभाग और आईआईटी के वैज्ञानिक आए और जांच की। न तो मंदिर के वास्तविक निर्माण का समय जान पाए और न ही बारिश से पहले पानी टपकने की पहेली सुलझा पाए हैं। हालांकि मंदिर का आकार बौद्ध मठ जैसा है। जिसके कारण कुछ लोगों की मान्यता है कि इसको सम्राट अशोक ने बनवाया होगा, परन्तु मंदिर के बाहर बने मोर और चक्र की आकृति से कुछ लोग इसको सम्राट हर्षबर्धन से जोड़ कर देखते हैं। जो भी हो कुल मिलाकर यह मंदिर किसानों के लिए तो वरदान ही बना हुआ है।