यूपी में विधानसभा के होने वाले चुनाव की लहर के बीच बीजेपी, बसपा और सपा ने अपने अपने कैंडिडेट्स की लिस्ट जारी कर दी है। इन जारी की गई कैंडिडेट्स की लिस्ट में चुने गए लोग अपनी-अपनी जगहों के दबंग लोग हैं, क्योंकि इनमें ईमानदारी की कोई भी गंदी बू नहीं है। बेइमानी ओर रसूक के साथ बने नेताओं की फौज पूरे उत्तर प्रदेश में जानी जाती है, यहां पर ईमानदारी को दफना कर बेईमानी के रास्ते पर चलकर पैसा कमाया जाता है। लेकिन आज हम ईमानदारी की रहा पर चलने वाले एक मंत्री के बारे में बता रहें हैं जो आज सड़कों की खाक छानने को मजबूर है। यह मंत्री कभी लाल बत्ती लगी सरकारी गाड़ी में कई सुरक्षा कर्मियों के बीच शान की जिंदगी से जीते थे, पर आज भरी भींड़ के बीच सड़कों पर अकेले खड़े नजर आ रहें है। हालत ये है कि बेटे के खर्चे से घर चल रहा है।
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एक बड़े आघात से छोड़ दी थी राजनीति
यह सच्चाई है हमीरपुर जिले के मौदहा कस्बे में रहने वाले बशीरुद्दीन की, जो कभी ईमानदार नेता की सबसे अच्छी छवि के लिए जाने जाते थें। इनकी राजनीति में आने की शुरूआत 1980 के दशक में हुई। सन् 1991 में पहली बार मौदहा सीट पर बसपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा। लेकिन बीजेपी के प्रत्याशी बादशाह सिंह द्वारा 26,138 वोट से हार गए। इसके बाद भी वो 18 हजार से ज्यादा वोट पाने वाले व्यक्ति के रूप में चर्चित हुए। 1993 में उन्हें बसपा ने मौदहा सीट पर खड़े होने के लिए दोबारा टिकट दिया और इस बार की मिली जीत से उन्होंने अपना पुराना हिसाब पूरा कर लिया था। साल 1995 में बीजेपी के साथ मिलकर बनी मायावती की सरकार में विधायक बशीरुद्दीन को मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया। इसके साथ ही वो अल्पसंख्यक जन कल्याण, वक्फ एवं हज विभाग के साथ 3 अन्य विभागों के चेयरमैन भी रहे। लेकिन बशीरुद्दीन को 1996 में होने वाले विधानसभा चुनाव बसपा की ओर से टिकट ना मिलने के कारण इतना बड़ा आघात लगा कि उन्होंने राजनीति से ही संयास ले लिया। उसके बाद से आज तक वे राजनीति से कोसों दूर रहकर लोगों के उतार-चढ़ाव को देख रहें हैं।
अब सड़कों पर पैदल घूमते हैं बशीरुद्दीन
यदि आज के समय के हालात का बात करें तो बशीरुद्दीन एक सामान्य जिंदगी जी रहें हैं। छड़ी का सहारा लिए वो सब्जी खरीदने से लेकर हर जरूरी काम खुद ही करते है। घर पर अखबार न होने के कारण वो सड़क के किनारे अखबार के पन्नों को पलटाते देखे जा सकते है।
यदि आज के समय की बात करें तो इस कडिंशन तक पहुंचने के लिए बशीरुद्दीन खुद ही उसके जिम्मेदार माने जा सकते हैं, क्योंकि आज के समय में ईमानदारी का नहीं बल्कि बेईमानी का बोलबाला है। ईमानदारी करने वाला व्यक्ति इसी तरह की राह में आकर खड़ा हो जाता है और हर चीज के लिए मोहताज रहता है। वहीं बेईमानी के साथ जीने वाला इंसान आसमान तक को छूने की ताकत रखता है। ये है दुनिया का सच..