देखा जाए तो अपने देश में ऐसे बहुत से किले हैं जिनमें बहुत सी अलग- अलग विशेषतायें हैं, पर आज हम आपको एक ऐसे किले के बारे में बता रहे हैं जिसमें लगा है “पारस पत्थर”। जी हां, पारस पत्थर जिसका उपयोग प्राचीन काल में लोहे को सोने में बदलने में किया जाता था। असल में पारस पत्थर एक इस तरह का पत्थर होता है जिससे यदि किसी लोहे के टुकड़े को स्पर्श करा दिया जाता है तो वह लोहा सोने में तब्दील हो जाता है। इसी प्रकार की एक मान्यता इस किले के साथ भी जुड़ी हुई है। लोगों का मानना है कि इस किले के शासकों के पास पारस पत्थर था, जिसे उन्होंने इस किले की दीवार में चुनवा दिया था। अन्य कई प्रकार की कहानियां भी यहां प्रचलित हैं, जैसे कि कोई व्यक्ति इस किले में घूमने आया था और किसी दीवार से छू जाने के कारण उसका लोहे का सामान सोने का हो गया था। इस प्रकार की भ्रांतियों से इस किले को भारी नुकसान भी हुआ है क्योंकि बहुत से लोगों ने पारस पत्थर की चाह में इस किले को जगह-जगह से खोद दिया था। ऐसे में यह किला खंडहरनुमा दिखाई पड़ने लगा था। इसके बाद 2004 में पुरातत्व विभाग ने इस किले का संरक्षण का कार्य शुरू कराया, जिसके कारण इस किले की ख़ूबसूरती फिर से इसको वापस मिल पाई।
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कहां है यह किला-
यह किला मध्यप्रदेश के भोपाल स्थित “गुना” नामक स्थान में है। इस किले का नाम “बजरंगगढ़ किला” है और इसमें “मोती महल” नामक एक छोटे किले का निर्माण भी किया गया था। इस किले का निर्माण 1710 से 1720 से दौरान राजा विक्रमादित्य ने कराया था, जो कि राधौगढ़ के शासक राजा धीर सिंह से पुत्र थे। उस समय इस किले का नाम “झारकोन जागीर” था। इस किले के मुख्य द्वार का निर्माण 1776 में राजा बलवंत सिंह ने कराया था और 19वीं शताब्दी में महाराजा सिंधिया द्वारा दिए गए आदेश से इस किले पर एक फ़्रांसिसी जनरल द्वारा आक्रमण किया गया। जिसके बाद यह किला काफी क्षतिग्रस्त हो गया था। इस किले की मरम्मत के लिए 2011 में ही अनुदान जारी हो गया था, पर इस काम को शुरू होने में 3 साल लग गए और यह 2014 में शुरू हो पाया। इसकी मरम्मत में करीब डेढ़ साल का समय लगा, जबकि यह काम 2012 में ही पूरा हो जाना चाहिए था। हाल ही में इस किले के बड़े हिस्से की मरम्मत का काम पूरा हुआ है। अभी किले का जो कुछ हिस्सा मरम्मत के लिए बचा है उसके लिए पुरातत्व विभाग ने 1.50 करोड़ का अनुदान तय किया है।