रहस्य – हिमालय स्थित प्राचीन योगी इस विधि से बनाए रखते हैं खुद को जवान

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आपने हिमालय पर रहने वाले प्राचीन योगियों के बारे में ऐसा सुना ही होगा कि वे हमेशा जवान ही रहते हैं, पर क्या आप जानते हैं कि वे हमेशा जवान आखिर कैसे बने रहते हैं? यदि नहीं, तो आज हम आपको बता रहें हैं इसका रहस्य अपने इस आलेख में ताकि आप इस रहस्य को जान सकें और अनुमान लगा सकें की हमारा सनातन धर्म अपने में कितना समृद्ध और गुप्त ज्ञान लिए हुए है, तो आइए जानते हैं इस रहस्य को।
हिमालय पर रहने वाले प्राचीन योगी सदा जवान रहते हैं, पर इसका कारण कोई तंत्र-मंत्र नहीं, बल्कि योगाभ्यास होता है, असल में योग के अंतर्गत बहुत सी ऐसी क्रियाएं भी हैं, जिनके अभ्यास से व्यक्ति के अंदर में सूक्ष्म चक्र धीरे-धीरे चेतन अवस्था में आ जाते हैं, यानी जाग्रत अवस्था में आने लगते हैं, मूल रूप से तो व्यक्ति के अंदर इस प्रकार के कई चक्र विधमान हैं, पर मुख्यतः इन चक्रों की संख्या 7 बताई जाती हैं। ये सभी चक्र व्यक्ति की रीढ़ की हड्डी में “सुष्मना” नाड़ी के अंतर्गत स्थित रहते हैं, इन चक्रों में पांचवा स्थान “विशुद्धि चक्र” का होता है।

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विशुद्धि चक्र एक ऐसा चक्र होता है जिसके जाग्रत अवस्था में आने पर व्यक्ति का मन “विशुद्ध” यानी साफ हो जाता है। साथ ही व्यक्ति के ज्ञान में अत्यधिक वृद्धि होती है तथा व्यक्ति के जीवन से सभी कष्ट विदा ले लेते हैं। इस चक्र का स्थान “ग्रेव जालिका” में गले के पिछले भाग में बताया जाता है, थॉयराइड ग्रंथि को इस चक्र का ही प्रभाव क्षेत्र बताया जाता है। योग के ग्रंथों में इस चक्र को गहरे भूरे रंग के कमल के रूप में बताया गया है। योग के ग्रंथों में बताया गया है कि व्यक्ति के मस्तिष्क के पीछे चंद्रमा स्थित बिंदु से अमृत की बूंद नीचे की ओर झरती है और यह बिंदु विशुद्धि चक्र और बिंदु के बीच एक स्थान लालन पर आकर गिर जाती है, पर जब योगी “खेचरी” या अन्य ऐसी ही किसी योग विधि का अभ्यास करता है, तो वह अपने तालु से इस अमृतरुपी बूंद को स्वयं पी लेता है यानी यह आम लोगों की तरह जाया नहीं होती, इस बूंद को ही वेद में “सोमरस” की उपमा दी गई है, जब योगी का विशुद्ध चक्र जाग्रत अवस्था में रहता है तो इस चक्र पर यह अमृत पहुंच कर रूक जाता है और अमृत प्रदायक हो जाता है और योगी के शरीर को पूर्ण रूप से बदल कर जवान बना देता है, इसी कारण से हिमालय के प्राचीन योगी सदैव जवान रहते हैं, जानकारी के लिए हम आपको यह भी बता दें कि चक्र जागरण की यह विधा योग में “कुंडलिनी योग” कहलाती है जो की अत्यंत गुह्र और गुप्त तथा कठिन है, इसलिए चक्र जागरण की कोई भी क्रिया किसी न किसी अनुभवी व्यक्ति के संसर्ग में रहने पर ही करनी चाहिए।

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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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