जगमगाती दीवाली के जलते दिये भले ही घरों पर उजाला भर देते है। पर इस त्योहार में फोड़े जाने वाले फटाखों से स्वच्छ वातावरण भी पूरी तरह से प्रदूषित हो जाता है। जिससे ना केवल पर्यवरण को नुकसान पहुंचता है बल्कि इंसान से लेकर पशु पक्षी भी इसकी चपेट में आ जाते है। भले ही हमारी सरकार ने पटाखों को जलाने पर बैन लगा दिया है पर लोगों के समझने में काफी समय लग सकता है। लेकिन हमारे भारत देश में एक जगह ऐसी भी है जो प्रदूषण की मार को देखते हुये कई सालों से दिवाली नही मना रहा है। जी हां यह जीता जागता सदेंशप्रद उदा बना है तमिलनाडु के ये 2 गांव।
जब पूरा भारत देश जगमग जलते दिये, ढेर सारी मिठाइयां और पटाखों के साथ इस उत्सव में सराबोर नज़र आता है। तब तमिलनाडु के 2 गांव में दिवाली के दिन न तो कोई उत्सव होता है और न पटाखे जलाए जाते हैं। इस गांव के लोगों ने करीब 14 सालों से दीवाली के अवसर पर पटाखे नहीं जलाए। जिसका सबसे बड़ा कारण है पक्षी अभ्यारण्य की सुरक्षा…
200 एकड़ की जमीन में फैले वेल्लोड़ अभ्यारण्य में अक्टूबर से जनवरी तक कई प्रजातियों के पक्षी प्रवास करते हैं। जो ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से उड़कर यहां पर आते है। दीवाली के दौरान पटाखों की अवाज से ये पक्षी काफी डर जाते है। जिन्हे सुरक्षित रखने के लिये यहां के गांव के लोग दीवाली पर पटाखे नहीं जलाए जाते हैं पिछले दो सालों से बच्चे दीवाली पर सिर्फ फुलझड़ी जलाकर खुश रह रहे हैं।
तिरूनलवेली का कूतनकुलम गांव
इस गांव के लोगों का पक्षियों से बेहद लगाव है। गांववालों का मानना है कि दूर देशों से आये इन पक्षीयों के आने से उनकी फ़सल अच्छी होती है.और पटाखों की तेज़ आवाज़ से पक्षी काफी डर जाते है। इसलिए ग्रामीणों ने कई दशक से दीवाली पर पटाखों का इस्तेमाल करना बंद कर दिया है।
तामिलनाडू के इन गांव के द्वारा मिली सीख हर किसी के लिये प्रेरणादायक है जो अपने स्वार्थ की भावना से नही बल्कि प्रकृति के बिगड़ते संतुलन के बनाये रखने के लिये अपनी खुशीयों को न्यौछावर कर रहे है।
आइये आज हम भी इनके साथ मिलकर “स्वच्छ भारत” को बनाये ऱखने की सीख लेते है।